ऐसे लोग बहुत कम हैं जो अपने काम को एंजौय करते हैं. खुद को ही देखिए, सुबह से शाम तक कितना संघर्ष करते हैं, काम करने में कितनी ऊर्जा लगाते हैं तब कहीं अपने संघर्ष पर विजय प्राप्त करते हैं.जीवन में आप गिरें या उठें, इस की जिम्मेदारी आप की है. खुद अपनी अवहेलना करना, खुद को कोसना ठीक नहीं है. किसी भी असफलता के समय अपना चिंतन ही आप की सहायता कर सकता है. हम अपने जीवन के हर अनुभव का विश्लेषण करें तो यह मालूम होगा कि हम जीवन की घटनाओं के हाथों कठपुतली की तरह यहांवहां खिंचते रहते हैं. हम अपने अंदर की आवाज को न सुनते हुए, अपनी आदतों के गुलाम बनते चले जाते हैं.

जीवन को बेहतर बनाएं

हम ऐसा क्या करें कि हमारा जीवन बेहतर से बेहतर बनता जाए. इस सवाल का जवाब इतना मुश्किल भी नहीं है लेकिन जीवन के प्रति सही सोच और नजरिए के अभाव में हमारी मुश्किलें बढ़ती चली जाती हैं. इस के निम्न कारण हैं :

हमारी कथनी और करनी में फर्क होता है. हम कहते कुछ हैं और करते हैं उस के विपरीत. हर सास कहती है, वह बहू को बेटी की तरह मानती है. लेकिन उस का व्यवहार इस बात को प्रमाणित नहीं करता है. दिनरात बहू के साथ कलह और झगड़ा कर के वह अपना संबंध बिगाड़ लेती है. उसी तरह बहू कहने को तो कहती है वह सास को मां की तरह मानती है जबकि अपनी सहेलियों में सास की निंदा कर अपनी नैगेटिव सोच का प्रमाण देती है. करने और सोचने के बीच समानता होनी चाहिए.

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