विश्वास रिश्तों में एक डोर की तरह होता है. आपसी विश्वास उतना ही मजबूत होना चाहिए जितना कि एक गठबंधन. जब हम किसी पर विश्वास करते हैं या कोई हम पर विश्वास करता है तो उस में पूरी ईमानदारी होनी चाहिए. 
ऐसे न जाने कितने किस्से हैं जो हमें बताते हैं कि किसी पर आंख मूंद कर कैसे भरोसा कर सकते हैं. और ऐसे किस्सों की भी कमी नहीं है जब  आप किसी के सामने अपना कलेजा निकाल कर रख दें तो भी उसे विश्वास नहीं होता कि आप वाकई उस के विश्वासपात्र हैं. वह आप पर हमेशा अविश्वास करता है.
आंख मूंद कर न करें विश्वास
किसी पर अंधविश्वास और किसी पर किसी हाल में विश्वास न होना ‘स्टेट औफ माइंड’ की करामात है यानी यह एक मनोदशा है और यह मनोदशा विश्वास से पैदा होती है और विश्वासघात से टूटती है. एक बार विश्वास बन जाए तो लोग आंख मूंद कर भरोसा करते हैं और एक बार किसी पर से विश्वास टूट जाए तो उस पर कभी भरोसा नहीं होता. 
दरअसल, विश्वास का धागा टूट जाने पर अगर उसे दोबारा जोड़ भी दिया जाए तो उस में गांठ तो पड़ ही जाती है. इसलिए प्यार में, आपसी संबंधों में और दांपत्य जीवन में आपसी विश्वास को कभी न टूटने दें क्योंकि एक बार आपसी विश्वास टूटा तो वह कभी नहीं जुड़ता. यदि जुड़ भी गया तो गांठ पड़ ही जाती है और रिश्तों में पहले जैसी मधुरतानहीं रहती.
विश्वास एकतरफा नहीं होता. पतिपत्नी के आपसी संबंधों का मामला हो, दोस्त से दोस्ती का मामला हो, प्रेमिका या प्रेमी से प्रेम का मामला हो, हर जगह आपसी विश्वास का आधार दोनों तरफ से होता है. संबंध कोई भी हो, उस की मजबूती पूरी तरह से विश्वास पर आधारित होती है, चाहे मामला दोस्त का हो, जीस्त का हो या जीवनसाथी का. जीवन का हर पहलू आपसी विश्वास से रचापगा होता है.
हद तो यह है कि आपसी विश्वास की जरूरत वहां भी पड़ती है जहां हम यह जान भी नहीं रहे होते कि यहां आपसी विश्वास की क्या उपयोगिता है. हम सफर कर रहे होते हैं और सफर में अपने पड़ोसी यात्री के साथ आपसी विश्वास का रिश्ता बनाते हैं. अगर यह खरा उतरता है यानी आप के उतरने तक पड़ोसी यात्री के साथ आप का आपसी विश्वास मजबूत रहता है तो कई बार सफर के ऐसे रिश्ते ताउम्र के रिश्ते बन जाते हैं और बिछड़ जाने के बाद भी दोस्तीयारी कायम रहती है.
विश्वास की डोर
आपसी विश्वास की ही डोर हमारे और पड़ोसी के बीच भी बंधी होती है. अगर हमारा आपसी विश्वास डगमगा जाता है तो फिर हम आह भर कर यही कहते हैं, ‘हम पड़ोसी चुन नहीं सकते.’ विश्वास शीशे की तरह नाजुक होता है जिस पर जरा सी चोट का प्रभाव काफी गहरा होता है. लेकिन विश्वास की डोर की मजबूती भी इस कदर होती है कि वक्त का बड़े से बड़ा तूफान भी इस को तोड़ नहीं पाता.
बरतें ईमानदारी
आपसी विश्वास न तो होशियारी से बनता है न समझदारी से. यह ईमानदारी से बनता है. यह सहजता से विकसित होता है. अगर आप किसी के प्रति ईमानदाराना झुकाव रखते हैं तो आप को कभी बताने की जरूरत नहीं पड़ती. उस के साथ आप के सहज विश्वासपूर्ण रिश्ते बन जाते हैं. लेकिन आपसी विश्वास को सजगता से भी विकसित किया जा सकता है. मगर इस के लिए सतत रूप से प्रयासरत व ईमानदार रहना होगा. बातबात पर शकशुबहे, गलतफहमियां, हिचकिचाहट संबंधों पर इस कदर हावी न हों कि आपसी विश्वास को दृढ़ बनाने, फलनेफूलने के लिए मौका ही न मिले. दरअसल, आपसी विश्वास बड़ी मेहनत और मशक्कत से हासिल किया जाता है. इसे पोषित करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. विश्वास को मजबूती देने के लिए धैर्य और समर्पण की जरूरत होती है. तभी रिश्तों का गठबंधन जीवनपर्यंत चलता है.
शीशे की तरह नाजुक
किसी के साथ आपसी विश्वास को मजबूत करने के लिए जरूरी नहीं है कि उस पर आप अपना ही नजरिया थोपें. साथी, हमसफर या पड़ोसी के साथ बेहतर आपसी संबंध बनाने का एक जरिया यह भी है कि उस के नजरिए को तवज्जुह दें. भले आप उस से सहमत न हों फिर भी उस की काट यों न करें कि उसे वह अपना अपमान समझे. हां, अपने नजरिए को साफतौर पर व्यक्त करें और यह संदेश देने की भी कोशिश करें कि आप उस के नजरिए से अपने तर्कों के चलते सहमत नहीं हैं. लेकिन व्यक्तिगत रूप से आप उस के प्रति न कटु विचार रखते हैं और न ही कोई निजी पूर्वाग्रह. इस से आप का प्रतिद्वंद्वी भी प्रभावित होगा. आप के नजरिए को समझेगा व अपने नजरिए की खामी को ईमानदारी से देखेगा और अगर वाकई उसे लगता है कि आप सही हैं तो वह आप के नजरिए को स्वीकार भी करेगा और आपसी रिश्तों को बनाने में सहयोग देगा.
संतुष्टि और सम्मान जरूरी
किसी के साथ संबंधों के मामले में आत्मसंतुष्टि का रवैया अपनाएं. क्योंकि एक आत्मसंतुष्ट व्यक्ति न केवल अपने प्रति ईमानदार होता है बल्कि अपने साथी की शारीरिक, मानसिक जरूरतों को भी समझने का जज्बा रखता है. आत्मसंतुष्टि के भाव से ही आपसी विश्वास का भाव मजबूत होगा, विशेषकर दांपत्य जीवन में मधुर और सार्थक संबंध आपसी विश्वास की बदौलत ही अधिक मजबूती से टिके होते हैं.
आपसी विश्वास मजबूत करने का एक जरिया यह भी है कि अपने सारे अहं त्याग कर पूर्ण समर्पण की भावना को अपने अंदर मजबूत करें. एकदूसरे के प्रति सम्मानभाव आपसी विश्वास को बढ़ाता है. अपनेआप में विश्वास भी आपसी संबंधों को मजबूती देता है. स्वयं को दूसरों के प्यार के काबिल समझना भी अपने प्रति एक बड़ा सम्मान है. संबंधों के विविध आयामों में निरंतरता द्वारा ही संबंधों की डोर को मजबूती मिलती है.

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