गठबंधन की राजनीति में ताकत का सबसे अधिक महत्व होता है. जिसकी जितनी ताकत दिखती है उसका पलड़ा उतना भारी रहता है. बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गठबंधन पर कांग्रेस का साथ छोड़ कर यह दिखाने की कोशिश की कि बसपा चुनावी तैयारी में कांग्रेस से आगे है.

उत्तर प्रदेश में बसपा ने यह साफ कर दिया कि गठबंधन के लिये वह भीख नहीं मांगेगी और सम्मानजनक सीटे मिलने पर ही समझौता करेगी. असल में मायावती बसपा की ताकत को सपा और कांग्रेस दोनों से ज्यादा मानती हैं. इस वजह से कांग्रेस और बसपा का तालमेल नहीं हो पाया.

उत्तर प्रदेश में अब सपा-बसपा के तालमेल को लेकर भी सवालियां निशान लगे हैं. दोनो ही दलों में अभी तक कोई बातचीत सामने नहीं आई है. पूर्व सपा नेता शिवपाल यादव के समाजवादी सेकुलर मोर्चा बनाने के बाद सपा को कमजोर करके आंका जा रहा था. ऐसे में सपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भाजपा के दो कद्दावर नेताओं को अपने मंच पर बुलाकर नये संकेत दे दिये हैं.

जय प्रकाश नारायण की जंयती के अवसर पर भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा ने समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय जाकर न केवल अखिलेश यादव को भविष्य का नेता बताया बल्कि भाजपा की वर्तमान सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना की. शत्रुघ्न सिन्हा ने राफेल सौदे और नोटबंदी दोनो को भाजपा नहीं मोदी का फैसला बताया.

यशवंत सिन्हा ने कहा कि मोदी सरकार में आपातकाल से खराब हालत है. अखिलेश यादव शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव को लेकर एक ऐसा तालमेल करना चाहते हैं जिससे वह सत्ता तक पहुंच सकें. लोकसभा चुनाव में सपा को कुछ बड़े नेताओं की दरकार है. जिनकी चर्चा से सपा का पलड़ा भारी दिख सके. शत्रुघ्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा इस काम में सपा की मदद कर सकते हैं. भाजपा से विरोध के बाद अब इन दोनों नेताओं को भाजपा से टिकट की उम्मीद भी नहीं है.

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