इंद्रेश कुमार आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक और कार्यकर्ता हैं जो महज 21 साल की उम्र में बीई करने के बाद आरएसएस से जुड़ गए थे. वे एक चुनौती पूर्ण और दुसाहसी काम करते रहे हैं वह है देश के तमाम मुसलमानों को आरएसएस से जोड़ने का, वावजूद यह जानने समझने के देश का इतिहास तो इतिहास वर्तमान भी इस पर सहमत नहीं. इंद्रेश मुसलमानों को हिन्दू नहीं बनाते बल्कि यह कहते हैं कि मुसलमानों को मुख्यधारा से जुड़ जाना चाहिए.

अब यह मुख्यधारा है क्या बला यह बताने की जरूरत नहीं कि वह हिन्दुत्व है जो इंद्रेश कुमार जैसे संघियों की राय में कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति है और मुसलमान इसके अपवाद नहीं. अक्सर आरएसएस की तरफ से रोजा इफ्तार दावतों में दिखने बाले इंद्रेश सालों बाद भी वहीं खड़े हैं जहां से चले थे यानि एक फ्लौप मुहिम की अगुवाई वे अभी तक कर रहे हैं.

अक्सर अपने बड़बोलेपन के चलते सुर्खियों और विवादों में रहने वाले इस वरिष्ठ कार्यकर्ता ने 13 फरवरी को दिल्ली के एक कार्यक्रम में एक दिलचस्प बात यह कही कि भीख मांगना भी देश के 20 करोड़ लोगों का रोजगार है, जिन्हें किसी ने रोजगार नहीं दिया उन लोगों को धर्म में रोजगार मिलता है , जिस परिवार में पांच पैसे की भी कमाई न हो उस परिवार का दिव्यांग और दूसरे सदस्य धार्मिक स्थलों में भीख मांगकर परिवार का गुजारा करता है, ये छोटा काम नहीं है.

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नरेंद्र मोदी के पकौड़ा बेचो के मशवरे पर भी वे कुछ कुछ बोले पर मुद्दे की बात 20 करोड़ भिखारी हैं जो बकौल इंद्रेश कुमार धर्म स्थलों पर भीख मांगकर गुजर करते हैं. बिना किसी लाग लपेट के कहा जाये तो धर्म वाकई सबसे बड़ा नियोक्ता और दाता है. निसंदेह इस सच बयानी के लिए इंद्रेश साधुवाद के पात्र हैं पर जाने क्यों वे धर्मस्थलों की अंदर पसरे लेनदेन पर खामोश रह गए. पैसा देने पर अंदर बाहर दोनों जगह आशीर्वाद और दुआएं मिलती हैं फर्क सिर्फ इतना है कि बाहर बाला तिरस्कृत और भीतर बाला स्वीकृत है, बाहर वाले की जात पात किसी को नहीं पता रहती पर अंदर लेने बाले पंडें के बारे में सब जानते हैं कि वह ब्राम्हण ही होता है.

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