मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 23 अगस्त को भोपाल के श्यामला हिल्स इलाके में स्थित अपना सरकारी आवास खाली कर चाबी लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को सौंप दी. गौरतलब है कि 19 जुलाई को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक आदेश में राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि एक महीने के अंदर सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से सरकारी आवास खाली कराए जाएं.

इस फैसले की हद में 3 पूर्व भाजपाई मुख्यमंत्री कैलाश जोशी, उमा भारती और बाबूलाल गौर भी आ रहे थे, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करते सरकारी बंगलों में रहने दिया. इन तीनों को समाजसेवियों की हैसियत से उन्हीं बंगलों में रहने दिया गया जिन में वे दिग्विजय सिंह की तरह सालों से रह रहे थे.

पूर्व भाजपाई मुख्यमंत्रियों को बंगलों की सुविधा देने के लिए उन से एक औपचारिक आवेदन भर लिया गया था. यह सुविधा दिग्विजय सिंह को भी दी जा सकती थी लेकिन अपना स्वाभिमान दिखाते उन्होंने साफ कर दिया कि वे शिवराज सिंह चौहान को कोई आवेदन नहीं देंगे. सियासी गलियारों में यह उम्मीद की जा रही थी कि दिग्विजय सिंह सरकारी बंगले के लालच में शिवराज सिंह के आगे झुक जाएंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया तो साफतौर पर हर कोई कह रहा है कि यह तो सरासर भेदभाव है या तो सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली कराओ या सभी को रहने दो.

एक पूर्व मुख्यमंत्री की अपनी अलग सियासी हैसियत होती है जिसे जताने में दिग्विजय सिंह चूके नहीं. बंगला खाली करने के साथ ही उन्होंने राज्य सरकार को यह आवेदन जरूर दिया कि उन के स्टाफ व कार्यालय के लिए नियमानुसार आवास आवंटित किया जाए.

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