13 मार्च की रात सोनिया गांधी ने तमाम विपक्षी नेताओं को एक मंच पर लाने के लिए डिनर दिया था. सपा और बसपा ने भी इस रात्रिभोज में दूत भेजे थे. यह डिनर बंगाली बाबाओं के चमत्कारों सा साबित हुआ, चंद घंटों बाद ही उत्तर प्रदेश और बिहार से भाजपा नाम की बला छू हो गई, लेकिन इस में कांग्रेस के योगदान का जिक्र कहीं नहीं हुआ जिस ने भी उम्मीदवार उतारे थे. इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस अब, दौड़ तो दूर की बात है, घिसटने में भी नहीं है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा की हार पर खुश भी हो सकते हैं और दुखी भी. खुश इसलिए कि भाजपा अजेय नहीं है और दुखी इसलिए कि अब अगर कभी विपक्षी एकता को ले कर कोई डिनर या लंच हुआ तो मायावती और अखिलेश यादव की प्लेट में ज्यादा परोसना पड़ेगा खासतौर से मध्य प्रदेश में जहां सपा और बसपा दोनों 10-15 सीटें और इतने फीसदी ही वोट ले जाती हैं.

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