उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से भाजपा की सांसद सावित्री फुले की हेयरस्टाइल और नैननक्श तो कुछकुछ बसपा प्रमुख मायावती से मिलतेजुलते हैं ही लेकिन दिलचस्प इत्तफाक यह भी है कि उन के विचार भी वैसे ही हो चले हैं जैसे राजनीतिक कैरियर की शुरुआत में मायावती के हुआ करते थे.

फर्क इतनाभर है कि तेजतर्रार सावित्री अभी सीधे यह नहीं कह पा रहीं कि तिलक, तराजू और तलवार इन को मारो जूते चार. 2 अप्रैल के हिंसक भारतबंद के बाद से दलित हितों को ले कर अपनी ही पार्टी पर निशाना साध रहीं सावित्री का ताजा दुख यह है कि जिन्ना विवाद का मकसद गरीबी और भुखमरी जैसे मुद्दों पर से जनता का ध्यान भटकाना है और संविधान की समीक्षा के बहाने आरक्षण हटाने की साजिश हो रही है.

सावित्री फुले अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने वालों को बचाने वालों पर भी सवाल उठाने लगी हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान उन्हें कैसे मैनेज करता है.

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