गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कम दुर्गति का शिकार हुई थी पर कर्नाटक में उम्मीद से ज्यादा हुई तो इस की एक अहम वजह राहुल गांधी की मंदिर जाने की बीमारी ही है. मतदाता को धर्म और जाति के नाम पर रिझाने का खानदानी नुस्खा भाजपा के पास ही है, इसीलिए सोशल मीडिया पर अमित शाह के बारे में मजाक में नहीं, बल्कि पूरी गंभीरता से यह कहा जाता है कि सरकार बनाने के लिए वैद्य अमित शाह से संपर्क करें.

कर्नाटक में कांग्रेस की यह कमजोरी तो लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने के साथ ही उजागर हो गई थी, रहीसही कसर वहां के मठाधीशों ने कांग्रेस के पक्ष में फतवे जारी कर पूरी कर दी. मठ हर कोई जानता है दलितों के नहीं होते, इसलिए दलितों में कांग्रेस को ले कर भी असमंजस रहा जिस का फायदा भाजपा को मिला.

राहुल गांधी के पास अब मुकम्मल वक्त यह तय करने के लिए है कि वे आगे भी वैसी ही राजनीति करेंगे जैसी भाजपा चाहती है या फिर वैसी जैसी जनता चाहती है.

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