भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा संसद में लाया गया पहला अविश्वास प्रस्ताव भले ही गिर गया, पर इस बहाने विपक्ष की एकजुटता के साथसाथ अगले साल होने वाले आम चुनाव का एजेंडा साफ हो गया है. विपक्ष का यह प्रस्ताव तेलुगूदेशम पार्टी ने लोकसभा में पेश किया था, पर इस पर बोलने के लिए सब से ज्यादा समय राहुल गांधी को मिला था. 50 मिनट के भाषण में राहुल गांधी को मौका मिला था नरेंद्र मोदी की जम कर खिंचाई करने का और अन्य विपक्षी दलों ने उसे सहज स्वीकार कर एक तरह से एनडीए को महागठबंधन की तैयारी की झलकी दिखा दी. राहुल गांधी ने पूरी आक्रामकता के साथ सरकार पर हमला बोला. राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अनियमितता, युवाओं की बेरोजगारी, किसानों की दयनीय स्थिति, दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर हिंसात्मक हमले जैसे मुद्दे उठा कर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कठघरे में खड़ा किया.

मोदी संख्याबल पर भले ही अविश्वास प्रस्ताव जीत गए हों पर विपक्ष द्वारा जनता से जुड़े सवालों का जवाब देने में वे विफल रहे. संघ प्रचारक से प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने वाले मोदी भाषण देने में माहिर हैं पर उन के प्रवचननुमा भाषण में विपक्ष के सवालों के जवाब नहीं दिखे, केवल व्यक्तिगत कटाक्ष ही दिखे. मतभेद भी, मनभेद भी

अन्नाद्रमुक पार्टी ने तो सरकार के पक्ष में मतदान किया, लेकिन एनडीए सहयोगी शिवसेना ने मतदान में भाग न ले कर साफ कर दिया कि वह मोदी सरकार से नाराज है. स्पष्ट है कि अगले चुनाव की रूपरेखा बनाई गई है जिस में वारिस और प्रवाचक के बीच संघर्ष निश्चित है. इस में जनता का हित कहां होगा, दोनों दलों के पास उस का कोई ब्लूपिं्रट नहीं है. महज भाषणबाजी है, हवाई बातें हैं, भरपूर जुमले हैं.

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