पिछले कुछ सालों से जाने क्यों चुनाव आयोग के सर यह भूत सवार हो गया है कि निष्पक्ष चुनाव के साथ साथ उसकी एक महती ज़िम्मेदारी मतदान प्रतिशत बढ़ाने की भी है जिसको निभाने की वह तरह तरह से मतदाताओं से अपील कर रहा है कि कुछ भी हो वोट जरूर डालो. यह जिम्मेदारी अब जुनून में चिंताजनक तरीके से तब्दील हो रही है. तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने चुनाव आयोग रंगोली और मेहंदी प्रतियोगिताएं तक आयोजित कर रहा है और तो और हर सरकारी आयोजन में वोट जरूर डालें वाले होर्डिंग और फ़्लेक्स अनिवार्य से हो गए हैं. माहौल शादी वाले घर सरीखा हो गया है जहां सभी एक दूसरे से यह जरूर पूछते हैं कि खाना खाया या नहीं इसमें भी दिलचस्प बात यह कि पूछने वाला जवाब का इंतजार नहीं करता उसका मकसद भी चुनाव आयोग की मुहिम जैसा औपचारिक होता है जिससे शादी में खाने की महत्ता चुनाव में वोट जैसी दिखती रहे.

इसे दिखने दिखाने की मानसिकता ही कहा जाएगा कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य  जिले झाबुआ में जिला निर्वाचन अधिकारी आशीष सक्सेना ने शराब की बोतलों तक पर मतदान को प्रोत्साहित करते लेबल लगवा दिये. इन लेबलों पर निमाड़ी गुजराती मिश्रित भाषा में वोट डालने की अपील की गई है. यानि ये बोतलें ब्रांड एम्बेस्डर हो गईं हैं जो धड़ल्ले से लायसेन्सी दुकानों से बिक रही हैं और चर्चा में हैं.

शराब चीज ही ऐसी है

इसे इन निर्वाचन अधिकारी की दूरदर्शिता ही कहा जाएगा कि प्रोत्साहन के लिए इन्होने सटीक प्रोडक्ट चुना है और बारीकी से चुनाव और मदिरा के अंतरंग सम्वन्ध को समझा है. इन दिनों सोशल मीडिया पर एक लतीफा बहुत वायरल हो रहा है जिसमें वोटर वोटिंग मशीन के सामने खड़ा कुछ सोचते सर खुजला रहा है मतदान अधिकारी के पूछने पर वह बताता है कि याद नहीं आ रहा है कि कल रात किसने दारू पिलाई थी तो किसे वोट दूं.

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