भारतीय जनता पार्टी ने अदालत की अवमानना की तो उस के नेतृत्व की केंद्र सरकार ने एक मौजूदा कानून के उलट क़दम बढ़ा दिया. केरल के सबरीमाला मंदिर मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने लोगों को बरगलाया जो अदालत की अवमानना है. वहीं, देश की सत्ता पर काबिज़ भाजपा की सरकार ने वेतन, भत्ते, सेवा शर्तें बताए बिना मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए योग्य उम्मीदवारों से आवेदन मंगाने का क़दम बढ़ा दिया जबकि मौजूदा कानून में ये सब बताना आवश्यक है.

राजनीतिक दलों और लोगों के सूचना अधिकार की मुहिम से जुड़े कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद देश की सरकार सूचना के अधिकार कानून (राइट टू इन्फार्मेशन एक्ट – आरटीआई एक्ट) में विवादास्पद बदलाव करने पर अडी है.  उस का अड़यलपन यहाँ तक है कि अभी वह कानून में संसद से संशोधन नहीं करा पाई है, फिर भी उस ने अपना निजी क़दम बढ़ा दिया है.

सरकार ने केन्द्रीय सूचना आयोग के मुख्य पद मुख्य सूचना आयुक्त के पद के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है जिस में सेवा शर्तों या वेतन का ज़िक्र नहीं है.  यह विज्ञापन मौजूदा आरटीआई एक्ट में प्रस्तावित उस  संशोधन के मुताबिक़ है जिस पर संसद की मुहर लगवाने के लिए अभी उसे सदन में पेश तक नहीं किया गया है.

केंद्र सरकार के कार्मिक एवम प्रशिक्षण विभाग (डेपार्टमेन्ट ऑफ़ पर्सनल एंड ट्रेनिंग) ने यह विज्ञापन जारी कर मुख्य सूचना आयुक्त पद के लिए आवेदन मंगाए हैं.  मौजूदा मुख्य सूचना आयुक्त आर. के. माथुर का कार्यकाल 24 नवम्बर को समाप्त  हो रहा है.  विभाग के विज्ञापन में सेवा शर्तों का ज़िक्र नहीं है.  विज्ञापन में यह लिखा है कि मुख्य सूचना आयुक्त पद के लिए चुने गए उम्मीदवार को नियुक्ति के समय वेतन, भत्ते, सेवा सम्बन्धी नियम व शर्तों के बारे में बताया जाएगा.

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