नरेंद्र मोदी सरकार के 4 साल पूरे होने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बधाई नहीं दी, उलटे, यह कहते पलटी मार दी कि पहले वे नोटबंदी के समर्थक थे पर इस से कितनों को फायदा हुआ. बात या मंशा की गुगली फेंकने के बाद वे बैंकिंग सिस्टम की खामियों का रोना रोते रहे.
सोचना वाजिब है कि क्या अब नीतीश कुमार पश्चात्ताप की तरफ बढ़ रहे हैं और उन्हें एनडीए का हिस्सा बनने के नुकसान नजर आने लगे हैं. 2014 में नींद में भी नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले सुशासन बाबू आखिर डर किस बात से रहे हैं, यह किसी को समझ नहीं आ रहा.

कुछकुछ लोग मानते हैं कि बिहार में गठबंधन के नाम पर भाजपा ने उन्हें नहीं, बल्कि उन्होंने भाजपा को फंसाया है और 2019 का लोकसभा चुनाव आतेआते वे फिर अपने पुराने रूप में आ जाएंगे जिस से नुकसान भाजपा का होगा. फंसनेफंसाने के इस खेल के मानें अब सामने आने लगे हैं तो इस में कर्नाटक के ड्रामे का भी अहम रोल है. यों नीतीश कुमार को भी पूरा हक है कि वे नोटबंदी की तारीफों में गढ़े अपने पूर्व कसीदे वापस ले लें.

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