महाराष्ट्र पुलिस द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तारी से देश में बड़े पैमाने पर मानवाधिकार और बुद्घिजीवियों ने नाराजगी जताई है. भीमा कोरेगांव मामले के नाम पर पुलिस ने 3 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था जबकि 2 की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी.

28 अगस्त को सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वेरवान गोंजाल्विस, अरुण फरेरा और वरवर राव की गिरफ्तारी के साथ स्टैन स्वामी, सुजैन  अब्राहम और आनंद तेलतुम्बडे के घरों पर एक साथ छापेमारी की गई. पुणे पुलिस का दावा है कि इन लोगों का नक्सलियों से संपर्क है और ये देश के लिए खतरा है. इन पर यह आरोप भी लगाया गया कि इन्होंने प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रची है.

इन गिरफ्तारियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए मामला 5 जजों की पीठ को सौंप दिया. दोनों पक्षों की दलीलों के बाद सुनवाई 6 सितंबर को तय की थी पर तब तक के लिए आदेश दिया गया कि पुलिस इन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकेगी और इन्हें घर में ही नजरबंद रखा जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट को यह भी कहना पड़ा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है अगर आप इसकी इजाजत नहीं देंगे तो यह सेफ्टी वाल्व फट जाएगा. असल में पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दलितों के शौर्य का जश्न मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम के बाद उन पर जो हिंसा हुई थी, पुलिस को उस की जांच करनी थी. भीमा कोरेगांव में हर साल दलित शौर्य के नाम पर कार्यक्रम का आयोजन किया जाता हैं.

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