अपनी योजनाओं के सही परिणाम न दे सकने वाले मोदी अब हिन्दुत्व के एजेंडे के दबाव में फंस गये हैं. विकास के मौडल की बात कर प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी अपनी योजनाओं से जनता को लुभाने में कारगर नहीं हुये.

खासकर नोटबंदी, जीएसटी, बेरोजगारी और मंहगाई के मुद्दे पर केन्द्र सरकार जिस तरह से फेल हुई उसके बाद हिन्दुवादी संगठन मोदी के विकास मौडल पर भारी पड गये. इसकी वजह से 2014 के मोदी का विकास मौडल 2019 में राममंदिर मौडल में बदल गया. राममंदिर आन्दोलन का श्रेय लेने के लिये शिवसेना, अखिल भारत हिन्दू महासभा, विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा आपस में ही टकरा रहे हैं .हिन्दुत्व के सामने लाचार प्रधनमंत्री मोदी मजबूरन इस रस्साकशी को देख रहे हैं.

अयोध्या के राममंदिर प्रकरण में केन्द्र सरकार इस बात की पक्षधर थी कि कोर्ट का फैसला ही मान्य होगा. मंदिर मुद्दे पर केन्द्र सरकार को बैकफुट पर देखकर शिवसेना ने उस पर दबाव बनाने के लिये 25 नवंबर को अयोध्या में सभा करने का एलान किया था. एक माह पूर्व शिवसेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्य सभा सदस्य संजय राउत ने कहा था कि शिवसेना की सभा में सेना प्रमुख उद्वव ठाकरे आएंगे और राम मंदिर के लिये कानून बनाने के मुद्दे पर केन्द्र सरकार को घेरेंगे. मंदिर मुददा शिवसेना लेकर न चली जाये ऐसे में भाजपा के कुछ नेताओं खासकर राकेश सिन्हा ने मंदिर मुद्दे पर निजी बिल लाने की बात कहनी शुरू कर दी.

शिवसेना को मात देने के लिये भाजपा की योगी सरकार ने अयोध्या में दीपोत्सव कार्यक्रम के दौरान फैजाबाद का नाम बदल कर अयोध्या करने के साथ ही सरयू किनारे राम की 152 फुट ऊंची प्रतिमा बनाने, एयरपोर्ट और मेडिकल कालेज बनाने की योजना पास कर दी. भाजपा के साथ ही साथ विश्वहिन्दू परिषद भी इस लडाई में कूद गई. विश्व हिन्दू परिषद ने 25 नवम्बर को ही अयोध्या में ही अपनी धर्मसभा करने का एलान कर दिया. धर्मसभा के लिये विहिप के अंतरर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय ने भूमिपूजन कार्यक्रम भी कर लिया. चंपत राय के कहा कि राम मंदिर मुकदमा सितम्बर 2018 माह में ही खत्म हो चुका होता पर छलकपट करने वाले इसे लोकसभा चुनाव तक ले जाना चाहते हैं.

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