तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में शुरुआती गहमागहमी के बाद पसरते सन्नाटे से सभी प्रमुख राजनैतिक दल और नेता सकते में हैं कि मतदाता चुनाव में उम्मीद के मुताबिक दिलचस्पी क्यों नहीं ले रहा है. वोटर्स को लुभाने में जुटे नेता अपनी तरफ से पूरा जोर लगा रहे हैं लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही है तो इसकी अपनी वजहें भी हैं कि लोग सभी दलों से नाउम्मीद हो चुके हैं. मतदाता की यह उदासीनता और खामोशी अगर किसी बड़े तूफान का इशारा है तो भाजपा को सत्ता मुट्ठी में बनाए रखने ज्यादा कोशिशें करना पड़ रहीं हैं जो इस खामोशी का मतलब समझ रही है कि लोग उसे लेकर खुश नहीं हैं.

दूसरी तरफ सत्ता की दौड़ में बराबरी से दौड़ रही कांग्रेस भी बेफिक्र नहीं है क्योंकि मतदाता उसके पक्ष में भी खुल कर नहीं बोल रहा है. आमतौर पर हिन्दी भाषी राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही चुनावी चहल पहल और सरगरमिया शुरू हो जाती हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है तो नेताओं को प्रचार के मुद्दे तय करने में कठिनाइयां पेश आ रहीं हैं.

लोगों की खामोशी बेवजह नहीं है क्योंकि भाजपा ने अपना चुनाव प्रचार अभियान एक साल पहले से ही शुरू कर दिया था, जिसके केंद्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे, वे अभी भी ऐसे हीरो हैं जिनकी फिल्में देख देख कर जनता ऊबने लगी है. एक साल से प्रदेश में घूम रहे शिवराजसिंह इतने वादे जनता से कर चुके हैं जितने आजकल के आशिक भी अपनी माशूका से नहीं करते. इन वादों की हकीकत वक्त से पहले ही सामने आने लगी है तो गड़बड़ाए शिवराज सिंह देश भर के जादूगरों को चुनाव प्रचार के लिए बुला रहे हैं. जल्द ही ये जादूगर गांव देहातों के हाट बाजारों में जाकर मजमा लगाएंगे और लोगों को सरकार की उपलब्धियां गिनायेंगे. इससे भी ज्यादा अहम बात ये कि वे दिग्विजय सिंह के दस साल के कार्यकाल की बदहाली भी जादू के साथ दिखाएंगे.

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