एक अक्तूबर को इलाहाबाद हाइकोर्ट का एक अहम फैसला आया था जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने वह याचिका खारिज कर दी थी जिसमें 1400 करोड़ के स्मारक घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई थी. याची शशिकांत पाण्डेय की याचिका कोर्ट ने यह कहते खारिज की थी कि यह व्यक्तिगत हित में दाखिल की गई है. गौरतलब है कि बसपा प्रमुख मायावती के कार्यकाल में हुये इस भीमकाय घोटाले में शशिकांत का भाई संतोष पाण्डेय भी शामिल है.

मायावती इस घोटाले में भले ही आरोपी न हों लेकिन वे भी जांच के दायरे में आ सकतीं थीं बशर्ते योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार कोर्ट को यह भरोसा न दिलाती कि इस घोटाले की जांच सीबीआई या किसी दूसरी एजेंसी से कराने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि स्मारक घोटाले की विजिलेन्स जांच तेजी से चल रही है और जल्द ही इसे पूरा भी कर लिया जाएगा. गौरतलब यह भी है कि अपने मुख्यमंत्री रहते मायावती ने लखनऊ और नोएडा में कई स्मारक और पार्क बनवाए थे जिन पर सरकार ने कोई 41 अरब 48 करोड़ रुपये खर्च किए थे. तब मायावती सरकार पर घपले घोटाले का आरोप लगा था लेकिन सरकार बदलने के बाद इस मामले की जांच तत्कालीन लोकायुक्त एनके मल्होत्रा को सौंपी गई थी.

लोकायुक्त ने 20 मई 2013 को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हां, 14 अरब 10 करोड़ 83 लाख और 43 हजार रुपये का घोटाला हुआ है. इस रिपोर्ट में कुल 199 लोगों को आरोपी बनाया गया था और विस्तृत जांच की मांग सीबीआई या एसआईटी से कराने की सिफारिश की गई थी. अखिलेश यादव सरकार ने लोकायुक्त की सिफारिशों को दराज में रखते हुये जांच राज्य के विजिलेन्स विभाग को सौंप दी थी. विजिलेन्स ने 1 जनवरी 2014 को लखनऊ के गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज की थी और मामला दर्ज होने के पोने पांच साल बाद भी न तो इसमें चार्जशीट दाखिल हुई और न ही विजिलेन्स जांच पूरी कर पाया.

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