किसी ने फुरसत से बनाई हैं तुम्हारी आंखें

सारी आंखों में निराली हैं तुम्हारी आंखें

कितनी उम्मीद से देखे हैं मुसाफिर इन को

राह जीने की दिखाती हैं तुम्हारी आंखें

वश में कर लें जिसे इकबार वो क्यूं कर छूटे

काले जादू की पिटारी हैं तुम्हारी आंखें

उम्रभर भूल न पाएंगे इन्हें हम ‘आलोक’

अपनी आंखों में बसा ली हैं तुम्हारी आंखें.

       

- आलोक यादव

 

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...