क्यों तुम्हारी आंखों में

तूफान उमड़ आया है

क्या किसी ने फिर

यादों के झरोखे पे खटखटाया है?

 

जो फूल दिया था उस ने कभी

खिलाखिला, महकामहका

क्या वही सूखा हुआ

किताब में निकल आया है?

 

जो तराना उस ने सुनाया था कभी

किसी पेड़ के नीचे

क्या वही पास से गुजरते

किसी ने गुनगुनाया है?

 

जो डोर बांधी थी कसमों की, वादों की, साथ में उस डाल पर

क्या उसी डाल का कोई पत्ता

उड़ कर इधर चला आया है?

 

क्यों मुरझाया हुआ है चेहरा

आज इस कदर यों तुम्हारा

क्या ख्वाबों में मुसकराता

वही चेहरा उतर आया है?

 

न पूछो, न टोको, न कहो कुछ भी

न कोई सवाल करो अब

बड़ी मुश्किल से मैं ने

मन को थपका कर सुलाया है.

जयश्री वर्मा

 

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