मुट्ठी में से रेत सी

फिसलती जिंदगी

कस लो मुट्ठी तो

हाथ से निकल जाए जिंदगी

खोलो मुट्ठी तो

हाथ से उड़ जाए जिंदगी

 

पलकों पर ठहरे अंसुअन सी

भीगी जिंदगी

पलकें झपको तो

आंखों से गिर जाए जिंदगी

बंद कर लो आंखों को तो

भीतर कसमसाए जिंदगी

 

नवजात, नन्हे, अकेले

पंछी सी जिंदगी

भीतर रखो तो

भूखी मर जाए जिंदगी

बाहर निकालो तो

शिकारी खा जाए जिंदगी

 

दीवार पर चढ़तीउतरती

चींटी सी जिंदगी

कभी थक कर नीचे

गिर जाए जिंदगी

ऐ काश, कभी लक्ष्य को

पा जाए जिंदगी.

शिवानी सिंह

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