है दुनिया एक मेला, यह है एक झुंड
सांस लेना है दूभर, रोकना है मुश्किल
न कोई फिक्र हो न कोई डर
खुला हो आसमान, पवन की हो सुगंध
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर

न कोलाहल सुनाई दे न चीखपुकार
न रोके कोई रास्ता, न दिखाए नया पथ
पंछी की उड़ान हो मेरा सफर
कोयल की कूक हो मेरी डगर
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर

कोई तो पहचाने मेरी इस आवाज को
कोई तो दे दे इसे मेरी ही पहचान
बस कोई तो सुन ले
इस धीमी सी चाल को
मुझे छोड़ दो बस मेरे हाल पर.

सुजाता ‘राज’

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