गैरों पर एतबार हो जाए
दुश्मन से भी प्यार हो जाए

नींद आंखों से उड़ जाए कहीं
उन से नजरें जो चार हो जाएं

हो कमान खिंची उन के हाथों में
और तीर जिगर के पार हो जाए

यों बेरुखी भी गवारा है तेरी
चाहे जीना दुश्वार हो जाए

फकत एक बार मुझे अपना कह दे
जान तुझ पर निसार हो जाए

भीगी जुल्फों को लहराओ तो सही
मौसमेखिजां भी बहार हो जाए.
अब्दुल कलाम

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...