रह गई कसक बाकी

बीते दिन की

मिल चुकी खाक में

उम्मीदें अपनी सारी

रह गई बाकी

याद उस की सारी

रह गई खाली

प्रीत की झोली अपनी

न चाह कर भी

छूट गया साथ उस का

मिन्नतें भी लाख कीं

मिल सका न संग उस का

नहीं रहा कुछ भी

अख्तियार अपना वक्त पे

भर रहा वक्त ही

अतीत के जख्म सारे

रही कसकभर इतनी

गुजरी नहीं उस के संग

जिंदगी अपनी.

- जयकृष्ण भारती

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...