निकल ही आते हैं बहाने
आंसू बहाने के
दूर से भी तुम 
नहीं छोड़ते मौके रुलाने के
ऐसी भी क्या बेचैनी थी 
दामन छुड़ाने की
पहले ढूंढ़ तो लेते 
बहाने कुछ ठिकाने के
मैं दिल की बात करता हूं 
तुम करो दुनिया की
छोड़ कर भी मुझे तुम 
न हो सके जमाने के
मेरे गीत-ओ-गजल में 
ढूंढ़ते हैं सब तुम्हें
मगर कुछ फिक्र न करना 
हम नहीं बताने के
बड़ी मुद्दत के बाद सोया था
कल रात मैं
तसवीर नहीं थी तेरी,
नीचे मेरे सिरहाने के
दिल को यकीं है
तुम लौट तो आओगे मगर
आवाज दे कर ‘आलोक’
अब तुम्हें नहीं बुलाने के.
आलोक यादव
 

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...