हमारी फिल्म इंडस्ट्री के रीतिरिवाज और मान्यताएं अलहदा हैं. वहां दूसरी पत्नी या फिर नायकों के जीवन में आई दूसरी औरत को ही सम्मान मिलता है. पहली पत्नी गुमनामी के अंधेरे में खो जाती है या फिर किसी तरह संघर्षों के सहारे अपना जीवन गुजारती है. फिल्मों से जुड़ी मशहूर शख्सीयतें चाहे वे निर्माता हो, कलाकार हो या फिर संगीतकार, अपनी पहली पत्नी को न केवल तलाक दे देते हैं बल्कि पहली पत्नी के साथ उसी शहर में दूसरा घर बसा लेते हैं. पहली पत्नी का घर तो होता है लेकिन उस में उस का पति नहीं होता. उसे खाली और एकाकीपन का दंश जीवनभर झेलना पड़ता है.

कुछ दिन पहले एक मशहूर फिल्म अभिनेता ने अपनी पत्नी से कहा था कि मेरी जान बख्शो क्योंकि मुझे किसी और से प्यार हो गया है. तुम धनदौलत, घरबार सब ले लो लेकिन मुझे आजाद करो. यह उस मानसिकता का परिचय है जिस में एक पुरुष शादी के संबंधों को बंधन मानता है, इसलिए आजादी की आकांक्षा प्रकट करता है.

वैसे भारतीय पौराणिक ग्रंथों में बहुपत्नी प्रथा के उदाहरण भरे पड़े हैं. महाभारत से ले कर कई अन्य धर्मग्रंथों में न केवल दूसरी शादी का उल्लेख मिलता है बल्कि विवाहेतर संबंधों का भी विस्तार से वर्णन मिलता है. लेकिन हमारे समाज में दूसरी पत्नी या सहजीवी को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता था और उस के लिए ‘रखैल’ से ले कर ‘दूसरी औरत’ जैसी संज्ञा का प्रयोग होता रहा है. कहना न होगा कि भारतीय समाज में दूसरी पत्नी को वह दरजा प्राप्त नहीं हो पाता जो पहली पत्नी को मिलता था. यहां फिल्मी दुनिया अपवाद है जहां दूसरी औरत अपनी चमकदमक से पहली को अंधेरे में धकेल देती है.

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