फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ के बाद जिस तरह से ‘‘शोरगुल’’ भी तमाम विवादों के बावजूद बाक्स आफिस पर दर्शक बटोरने में नाकाम रही है, उससे यह बात उभर कर आती है कि फिल्मकारों को दर्शकों को मूर्ख समझने की भूल नही करनी चाहिए. यह दोनों ही फिल्में पिछले एक माह के दौरान जबरदस्त विवादों में रहीं. फिल्म ‘‘शोरगुल’’ के निर्माताओं ने अपनी फिल्म के ट्रेलर के साथ ही हवा फैलायी थी कि उनकी फिल्म ‘‘शोरगुल’’ उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर में हुए दंगो पर आधारित है.

जब विवाद गहराया, अदालत में पीआईएल दाखिल हुई, तो फिल्म के मुख्य कलाकार जिम्मी शेरगिल सहित निर्माता तक ने पैर खींच लिए. सभी सफाई देने लगे कि उनकी फिल्म दंगों पर नही बल्कि एक प्रेम कहानी है. इस फिल्म का वास्तविक पात्रों से कोई संबंध नहीं है. उसके बाद निर्माताओ ने अपनी फिल्म ‘‘शोरगुल’’ को बाक्स आफिस पर सर्वाधिक सफल फिल्म साबित करने के लिए इसके प्रदर्शन की तारीख 24 जून से 17 जून की, फिर उसे 24 जून की और 24 जून को फिल्म प्रदर्शित नहीं की. इसकी वजह बतायी गयी कि मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं और फतवा जारी हो गया है.

बहरहाल, प्रचार के हर तरह के हथकंडे अपनाने के बाद जब एक जुलाई को ‘‘शोरगुल’’ सिनेमाघरों में पहुंची, तो कोई शोर नहीं हुआ. पता चला कि इसे दर्शक नहीं मिल रहे हैं. पहले दिन ‘‘शोरगुल’’ ने पूरे उत्तर प्रदेश और दिल्ली को मिलाकर सिर्फ साढ़े दस लाख रूपए ही इकट्ठा कर सकी. इसके मुकाबले ‘शोरगुल’ ने मुंबई में पहले दिन सात लाख रूपए इकट्ठा किए. पूरे देश का हाल देखा जाए, तो ‘शोरगुल’ ने पूरे देश में सिर्फ 30 लाख रूपए ही कमा सकी. यानी कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मुंबई को हटा दें, तो ‘शोरगुल’ को पूरे देश से तेरह लाख रूपए जुटाना मुश्किल हो गया. इससे यह बात साबित हो जाती है कि फिल्म का कंटेंट, कहानी और कलाकारों की परफार्मेंस अच्छी हो, तभी फिल्म देखने के लिए दर्शक उमड़ता है, महज प्रचार के हथकंडे या फिल्म को लेकर विवाद पैदा करने से दर्षक नहीं मिलते.

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