सिनेमा समाज का दर्पण होता है. यही वजह है कि इन दिनों शिक्षा जगत व शिक्षा की खामियों को उजागर करने वाली फिल्में बन रही है. कुछ माह पहले जयंत गिलाटकर शिक्षा जगत पर व्यंग प्रधान फिल्म ‘‘चाक एन डस्टर’’ लेकर आए थे. अब अश्विनी अय्यर तिवारी शिक्षा जगत पर व्यंग कसने के अलावा दर्शकों को इंस्पायर करने वाली फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ लेकर आ रही हैं. 22 अप्रैल को रिलीज होने वाली फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ में लोगों के घरों में काम करने वाली बाई चंदा (स्वरा भास्कर) और उनकी बेटी की कहानी है. जो कि एक मोड़ पर एक ही सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती हैं. इस स्कूल के प्रिंसिंपल और गणित के शिक्षक (पंकज त्रिपाठी) अपने हर विद्यार्थी को लंबी रेस का घोड़ा बनाना चाहते हैं. वह बिना ट्यूशसन लिए बच्चों को पढ़ाते हें. पर क्या वास्तव में आज की शिक्षा पद्धति सही है?

फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ में प्रिंसिपल का किरदार निभाने वाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी वर्तमान समय में शिक्षा की जो स्थिति या जो समस्याएं हैं, उनको लेकर अपनी निजी समझ या सोच के बारे में बताते हुए कहते हैं-‘‘देखिए,मैं फिल्म ‘निल बटे सन्नाटा’की बात नहीं कर रहा हूं. निजी जीवन में शिक्षा को लेकर मेरी दो समझ है. मेरी पहली समझ यह कहती है कि हमारी सरकार नहीं चाहती कि सभी लोग अच्छी शिक्षा ग्रहण करें. यदि सभी लोग अच्छी तरह से पढ़ लिख गए, तो सभी राजनैतिक पार्टियों और नेताओं का बुरा हाल हो जाएगा. इसीलिए सभी सरकारें शिक्षा का ढोंग चलाती हैं.

सरकारें चाहती हैं कि शिक्षा का बजट 500 से 1000 करोड़ हो जाए, नए स्कूल बने. आंगनबाड़ी हो. पर वास्तविक पढ़ाई ना हो. यदि इंसान वास्तव में सही शिक्षा पा गया,तो उसे पास सही और गलत की परख हो जाएगी. फिर वह जाति धर्म आदि के चक्कर में नहीं फंसेगा. तब राजनीतिज्ञ पार्टियों की शामत आ जाएगी. कोई भी नेता अपनी शामत नहीं बुलाना चाहता. दूसरी समझ यह है कि जो वास्तव में पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए निजी स्कूल खुल गए हैं. जहां शिक्षा का पूरी तरह से व्यवसायीकरण हो गया है. ऐसे निजी स्कूलों में पढ़ाई हो रही है. मगर फायदा किसी एक बड़ी कंपनी या इंसान को हो रहा है. यह निजी स्कूल या कालेज भी हमारे देश के नेताओं के हैं.’’

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