बंगाल टाइगर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती अभिनेता तो थे ही, नेता भी बन चुके हैं. बेहद समझदारी दिखाते हुए उन्होंने कैरियर के आखिरी दौर में ऊटी में होटल का बिजनैस खड़ा किया और वहीं पर हिंदी की बी व सी ग्रेड फिल्मों की फैक्टरी खड़ी कर दी. आर्थिक तौर पर स्थिर होते ही मिथुन बौलीवुड में फिर कायदे के रोल करने लगे. लगे हाथों बेटे मिमोह को फिल्मों में एक बार नहीं, कई बार लौंच किया लेकिन हर बार वह फेल हुआ. नाम बदल कर महाअक्षय करने से भी काम नहीं बना. इसी बीच, अपने दूसरे बेटे रिमोह को भी बतौर असिस्टैंट डायरैक्टर फिल्मी दुनिया में उतारने वाले मिथुन को शायद इस बात का एहसास नहीं है कि हीरो बनना सब के बस में नहीं होता. बेहतर होता कि वे अपनी मेहनत से कमाया पैसा फ्लौप फिल्मों के बजाय कहीं और लगाते. यहां तो नुकसान ही नुकसान दिख रहा है.

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