सरिता के जून (प्रथम), 2015 के अंक में प्रकाशित लेख ‘फैसले के पहले सजा भुगतते व्यापमं घोटाले के आरोपी’ में व्यापमं घोटाले में लिप्त आरोपियों की परेशानियों का जिक्र किया गया था जिस में मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के बेटे शैलेष यादव की कथित आत्महत्या का उल्लेख भी प्रमुखता से था कि उस की मौत संदिग्ध है और अगर आत्महत्या है तो गिरफ्तारी का डर और ग्लानि इस की बड़ी वजहें हैं. लेख के आखिर में यह भी कहा गया था कि परेशान और आत्महत्या कर मर रहे लोगों से आम लोगों को कतई सहानुभूति नहीं क्योंकि लोग सोचते हैं कि घोटाला किया है तो अब भुगतो भी. इस लेख की मंशा पर जब लोगों का ध्यान गया तो व्यापमं घोटाले से किसी भी रूप में जुड़े लोगों की मौत पर शक व सवाल उठ खड़े होने लगे कि वे आत्महत्याएं हैं या हत्याएं? वजह, कुछ मौतों का वाकई संदिग्ध होना था. ऐसी ही एक संदिग्ध मौत की पड़ताल करने के लिए 4 जुलाई को एक प्रमुख न्यूज चैनल (आज तक) के संवाददाता अक्षय सिंह मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ के कसबे मेघनगर आए थे. यह संदिग्ध मौत इंदौर मैडिकल कालेज की एक 19 वर्षीय छात्रा नम्रता डामोर की थी जिस पर अक्षय को उस के परिजनों का इंटरव्यू और पक्ष सुनना था. नम्रता का नाम उन आरोपी छात्रों की फेहरिस्त में शुमार था जिन्होंने गलत तरीके से पीएमटी के जरिए एमबीबीएस में दाखिला ले लिया था और पकड़े गए थे.

नम्रता को एमबीबीएस में दाखिला व्यापमं घोटाले के सरगना डा. जगदीश सागर ने दिलाया था जिस के संपर्क में वह दूसरे आरोपी डा. संजीव शिल्पकार के जरिए आई थी. और संजीव शिल्पकार के संपर्क में वह एक दूसरे छात्र गौरव के जरिए आई थी. नम्रता की लाश 7 जुलाई, 2012 को उज्जैन में रेल की पटरियों पर पड़ी मिली थी. हादसे के दिन वह इंदौर से जबलपुर जाने को निकली थी. इस मौत को पुलिस ने पहले खुदकुशी और फिर हादसा बता कर मामले का खात्मा कर दिया था. बहरहाल, अक्षय सिंह नम्रता की मौत के तार व्यापमं घोटाले से जोड़ने के लिए मेघनगर पहुंचे थे. उन्होंने नम्रता के घर वालों से बातचीत की और जैसे ही उस के घर से बाहर निकले वैसे ही उन की भी मौत हो गई.

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