उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक दलबदल हुआ है. हर दल में दलबदल हो रहा है. बाहरी भीतरी का घमासान सबसे उपर है. कई प्रत्याशी खुद जीतने के लिये कम दूसरे को हराने के लिये ज्यादा ताल ठोंक रहे हैं. दलबदल के दलदल से एक बात साफ नजर आ रही है कि अब किसी भी दल की कोई विचारधारा नहीं रह गई है. सारा गणित सत्ता को हासिल करने के लिये तैयार किया जा रहा है. सत्ता को हासिल करने के लिये अभी तक जाति, धर्म, परिवार और बाहूबल के आधार पर टिकट दिया जाता था, अब बाहरी दल के नेता से भी कोई एतराज नहीं रह गया है. ऐसे नेताओं के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं का तालमेल मुश्किल हो गया है. जो कार्यकर्ता सालोंसाल से चुनाव लड़ने के लिये अपना क्षेत्र बनाने में लगे थे, उनकी जगह किसी दूसरे को टिकट देकर पार्टियों ने मेहनत करने वालों को निराश किया है.

भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी की हालत सबसे खराब है. सबसे अधिक दलबदल का दलदल भाजपा में हुआ है. राजधानी लखनऊ की विधानसभा की 9 सीटे हैं. इनमें से केवल 3 पर भाजपा नेताओं को टिकट मिली है. बाकी 6 पर भाजपा के बाहरी नेताओं को टिकट दिया गया है. ऐसी हालत सभी सीटों पर है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की हालत भी अजब हो रही है. कई सीटे ऐसी हैं जहां पर सपा और कांग्रेस दोनो के प्रत्याशियों के साथ सपा के नाराज नेता भी लोकदल जैसे छोटे दलों से मैदान में हैं. राजनीति के जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में दलबदल हुआ है. अब तो यह पहचान मुश्किल हो गई है कि कौन नेता किस दल से लड़ रहा है.

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