राजकीय माध्यमिक विद्यालय में 8वीं जमात में पढ़ रही 14 साल की संजू कुमारी कहती है, ‘‘आखिरकार सरकार ने हमें अपनी जमीन से हटा ही दिया. सरकार ने रहने के लिए नई जमीन तो दी है, लेकिन वहां पढ़ने के लिए स्कूल ही नहीं है. बाबूजी पढ़ने के लिए किसी दूर के स्कूल में नहीं जाने देंगे.’’ उमेश बिंद का बेटा धर्मवीर कुमार चौथी जमात में पढ़ता है. वह बताता है, ‘‘मेरे जैसे कई बच्चों ने मुख्यमंत्री अंकल और डीएम अंकल को चिट्ठी लिख कर मांग की थी कि हम लोगों को नहीं हटाया जाए. हम लोग मन लगा कर पढ़ाई करेगे और बड़े आदमी बनेंगे, पर कोई सुनता ही नहीं है.’’ 60 साल की सरस्वतिया देवी सिसकते हुए कहती हैं, ‘‘मैं ने जमीन खोने का दर्द कई बार झेला है. मैं जब काफी छोटी थी, तभी मेरे पिता की जमीन एक दबंग ने धोखे से हड़प ली थी. मेरे परिवार को गांव छोड़ कर भागना पड़ा था. परिवार चलाने के लिए पिता को मजदूरी करनी पड़ी और मां को दाई का काम करना पड़ा था.

‘‘मैं ने भी छोटी उम्र से ही जूठे बरतन धोने का काम शुरू कर दिया था. अब एक बार फिर से जमीन से उजड़ने की पीड़ा झेलनी पड़ी है.’’ पटना के पश्चिमी इलाके में पिछले कई सालों से बसी दीघा बिंद टोली से उखड़ने और उजड़ने के बाद सभी 205 परिवारों को नया पता मिला है, कुर्जी बिंद टोली. कुर्जी के पास मैनपुरा में साढ़े 6 एकड़ की जमीन पर बिंद टोली के बाशिंदों ने अपना नया आशियाना बना लिया है. सरकार की ओर से बिजली, पानी, आनेजाने का रास्ता वगैरह बनाने का काम शुरू किया गया है. इस के अलावा स्कूल, सामुदायिक भवन वगैरह बनाने का भरोसा दिया गया है. मिट्टी खोदने का काम करने वाला रघुनाथ कहता है कि रेलवे पुल की योजना को पूरा करने के लिए सरकार ने बिंद टोली के लोगों को हटाने के लिए कई वादे तो कर दिए हैं, लेकिन कभी भी पूरे नहीं हो पाएंगे.

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