हमारा देश आस्थावानों का देश है, जिसमें तर्क करने और सवाल पूछने की मुमानियत है, भगवान है यह लोगों ने मान लिया है, मस्तिष्क रेखा गुरु पर्वत की तरफ जाये तो जातक भाग्यवान होता है, जन्मकुंडली के सप्तम भाव मे मंगल हो तो कन्या के विवाह में अडचने आती हैं, यह और ऐसी हजारों बेसरपैर की बातें हमारी रोजमरराई ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं, जिन पर तर्क या सवाल करो तो पंडे तिलमिला उठते हैं, क्योंकि उनकी दुकानदारी खतरे में पड़ने लगती है. सीधे सीधे पूछने वाला नहीं मानता, तो उसे प्रताड़ित किया जाने लगता है और इस पर भी उसके मन में श्रद्धा उत्पन्न न हो तो उसे नर्क पहुंचाने का भी इंतजाम कभी कभी कर दिया जाता है.

भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक सवालों के दायरे में है. परसों तक प्रधानमंत्री को इस बाबत सेल्यूट ठोकने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एकाएक ही पलटी मारते हुये सर्जिकल स्ट्राइक की सच्चाई पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह, रणजीत सुरजेवाला और संजय निरूपम भी इसी बात को दूसरे तरीके से कह रहे हैं कि हमारी सरकार को पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जबाब देना चाहिए कि वाकई सर्जिकल स्ट्राइक नाम की कोई क्रिया सम्पन्न हुई भी थी या नहीं.

साध्वी उमा भारती ने बहुत सटीक जबाब केजरीवाल को दे दिया है कि उन्हे पाकिस्तान चले जाना चाहिए, लेकिन भगवान है या नहीं, जैसे बेहूदे सवाल नहीं पूछने चाहिए. कायदे से तो बात या फसाद इसी जवाब के साथ खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन उमा या दूसरे महाराजा जैसे लोग यह भूल रहे हैं कि यह त्रेतायुग नहीं कलयुग है और हाल फिलहाल आर्यावर्त मे लोकतन्त्र है. लोग पहले अरविंद केजरीबाल को पानी पी कर कोसेंगे, पर चार दिन बाद खुद ही  सरकार से कहेंगे कि अगर सबूत हों तो दे दो हर्ज क्या है. तब सरकार क्या करेगी, पता नहीं, लेकिन महज एक सवाल पूछ लेने से कोई राष्ट्रद्रोही करार नहीं दिया जा सकता.

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