मंगलवार, 29 दिसंबर, 2015 को दलित इंडियन चैंबर औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री के राष्ट्रीय सम्मेलन में जमा हुए दलित कारोबारियों के सामने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बात कही थी, ‘दलितों का अच्छे कपड़े पहनना सामंती सोच वालों को रास नहीं आया. आप की तरह मैं ने भी खूब अपमान सहा है.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह छिपा वार उन की विरोधी पार्टी कांग्रेस के लिए था, जो उन की ‘सूटबूट की सरकार’ को कोसने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती है. अब इसे सियासी लड़ाई कहें या कड़वी सचाई, पर हकीकत तो यही है कि आज भी अगर कोई दलित अपनी आवाज बुलंद कर कुछ कहना चाहता है, तो उसे दबाने की भरसक कोशिश की जाती है.

ऐसा ही कुछ आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में भी हुआ. नए साल का जश्न अभी फीका भी नहीं पड़ा था कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कुछ ऐसा घट गया, जिस ने पूरे देश में हलचल मचा दी.

रविवार, 17 जनवरी, 2016 को हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक छात्र रोहित वेमुला ने होस्टल के कमरे में फांसी लगा कर अपनी जान दे दी थी. इस से 2 हफ्ते पहले गुंटूर जिले के पीएचडी स्कौलर रोहित वेमुला समेत 5 छात्रों को होस्टल से निकाला गया था. वे पांचों छात्र 15 दिनों से कैंपस में धरना दे रहे थे.

निकालने की वजह

यह पूरा मामला मुंबई हमले के गुनाहगार याकूब मेमन की फांसी को ले कर शुरू हुआ था. दरअसल, रोहित वेमुला जिस अंबेडकर स्टूडैंट्स एसोसिएशन में शामिल था, वह दलित छात्रों?द्वारा बनाया गया एक संगठन है. इस संगठन के कुछ छात्रों ने याकूब मेमन की फांसी का न केवल खुल कर विरोध किया था, बल्कि उस के पक्ष में नारेबाजी भी की थी. यही बात उन के विरोधी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद गुट से टकराव की वजह बनी.

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