भारत में सब को शिक्षित करने के इरादे से चलाई गई ‘सर्वशिक्षा अभियान’ योजना सफेद हाथी की शक्ल अख्तियार कर चुकी है. आम लोगों के मेहनत की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपए सरकार द्वारा खर्च कर दिए जाने के बावजूद भारतीय शिक्षा का स्तर व गुणवत्ता बेहद शर्मनाक है. पढि़ए कपिल अग्रवाल का लेख.

हिंदी माध्यम के 10वीं पास विद्यार्थी को सादा जोड़घटाना तो दूर, अक्षरों व मात्राओं तक का ज्ञान नहीं होता. अंगरेजी माध्यम के स्कूलों की हालत इस से भी ज्यादा खराब है. हिंदी पर ध्यान नहीं दिया जाता और अंगरेजी केवल किताबी ज्ञान तक सीमित कर दी जाती है. विद्यार्थी सही ढंग से अंगरेजी में एक प्रार्थनापत्र तक नहीं लिख सकता. यानी 3 तरह से देश को नुकसान झेलना पड़ा रहा है. पहला, हर साल सरकार की शिक्षा के नाम पर खर्च होने वाली अरबों रुपए की राशि मिट्टी में मिल रही है. दूसरा, मांबाप अपनी गाढ़ी कमाई पब्लिक स्कूलों में झोंकने के बावजूद कोई नतीजा हासिल नहीं कर पाते. पर इस सब से परे एक ऐसा नुकसान है जिस का अंजाम देश को कदमकदम पर भुगतना पड़ता है और वह है महत्त्वपूर्ण कामकाज में त्रुटियां व अज्ञानता. यह हाल तो तब है जब हमारी सरकार हर साल शिक्षा के मद में अरबों रुपए का प्रावधान बजट में करती है. इस बार 50 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.

यह सब सिर्फ हमारे यहां ही नहीं है, उन्नत समझे जाने वाले विश्व के तमाम देशों में भी कुछ ऐसी ही हालत है. हाल ही में कनाडा की 2 कंपनियों को मात्र एक अर्द्धविराम गलत जगह लगा देने के कारण कई अरब डौलर के करार से हाथ धोना पड़ा. गत दिनों विश्व बैंक की एक टीम ने तमाम देशों के अलावा अपने देश के कई राज्यों का दौरा कर शिक्षा के स्तर व गुणवत्ता की माप की. इस में हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल व अंगरेजी माध्यम के तमाम मशहूर स्कूलों को लिया गया. टीम ने पाया कि आजकल शिक्षा का वैश्विक स्तर काफी गिर चुका है. विश्वभर में कुछ चुनिंदा स्कूल व संस्थान ही हैं जो वास्तव में सही शिक्षा प्रदान कर रहे हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...