अब जबकि यह लगभग तय हो चुका है कि राहुल गांधी ही कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होंगे, तो इसे आश्चर्य से नहीं लिया जाना चाहिए. राजनीति में अनिश्चय और अनिर्णय बहुत लंबे समय तक नहीं चला करते. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में जब राजनीति खासकर कांग्रेस को लेकर कयासबाजियों का दौर हो, तब यह एक जरूरी निर्णय है. बदलते वक्त के साथ कदम मिलाकर चलने वाला लेकिन देर से लिया गया निर्णय. फिलहाल यह फैसला कांग्रेस के निचले स्तर के कार्यकर्ता को उत्साहित करने वाला है.

130 साल पुरानी कांग्रेस में यह पहली बार हुआ जब वर्किंग कमेटी ने एक स्वर से शीर्ष नेतृत्व के लिए किसी नाम की सिफारिश की. जिस तरह पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी ने राहुल गांधी के नाम का प्रस्ताव किया, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अनुमोदन किया और सभी प्रमुख बड़े नेताओं ने समर्थन किया उसके संकेत और संदेश काफी स्पष्ट हैं. यह भी स्पष्ट है कि यह फैसला अप्रत्याशित नहीं है. इसके पीछे सुचिंतित रणनीति है. कांग्रेस जैसे संगठन में ऐसे फैसले अनायास नहीं हुआ करते.

हालांकि फिलहाल कांग्रेस की असल समस्या नेतृत्व की नहीं है. यह शायद कभी रही भी नहीं. राजनीति में सवाल तो उठते ही हैं. तब भी उठे थे जब राजीव गांधी ने विपरीत हालात में नेतृत्व संभाला था. तब भी उठे थे जब सोनिया गांधी ने कमान संभाली थी. यहां असल सवाल कांग्रेस की अपनी साख और खोई जमीन की वापसी का है. ऐसे समय में, जब उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के चुनाव सामने हों यह बड़ा फैसला है. इसके संकेत भी साफ हैं. संदेश भी.

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