धर्म वास्तव में उतना मजबूत होता नहीं है जितना कि दिखता है. दरअसल में उद्योग और राजनीति मिलकर उसे मजबूती देते हैं, जिससे वक्त पड़ने पर अपना उल्लू सीधा किया जा सके. दर्शनशास्त्र से स्नातकोत्तर उपाधि लेने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तय है इस बात को औरों से बेहतर समझते होंगे, लेकिन उनकी अपनी मजबूरियां और कमजोरियां हैं, जिनके चलते वे अक्सर धर्मगुरुओं के सामने नतमस्तक नजर आते हैं.

ज्येातिष व द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपनांद जब बीते दिनों पांच दिवसीय प्रवास पर भोपाल आए, तो शिवराज सिंह चौहान दौड़े दौड़े उनके पास गए और चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लिया. कभी विदिशा में दुर्गा और गणेश की झांकियों से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले शिवराज सिंह को लगता है कि यह धर्म की शक्ति और धर्मगुरुओं के आशीर्वाद का प्रताप है कि वे आज इस मुकाम पर हैं.

स्वरूपानंद ऐसा नहीं कि किसी जंगल में बैठे कोई कठोर तपस्या या त्याग करते हों, पक्षियों ने उनके बालों में घोसला बना लिया हो और पलकें जमीन छूने लगी हों या फिर शरीर में दीमक लग गई हो, उलटे उनका वैभव देख जरूर श्रद्धालु हैरत में पड़ जाते हैं. स्वरूपानंद जिस वेन में चलते हैं उसमें ऊपर चढ़ने के लिए लिफ्ट लगी हुई है वे देश के किसी भी कोने में हों, उनके पीने का पानी गोटेगांव (श्रीधाम) स्थित उनके आश्रम से ले जाया जाता है और उनकी भारी भरकम रसोई उनके साथ चलती है.

बहरहाल राजनेता अगर इस तरह धर्मगुरुओं के पांवों में पड़े दिखाई दें तो इससे लोकतंत्र कमजोर होता है. धर्म के अंधे पाखंडी, अंधविश्वासी लोग यह नहीं समझ पाते कि कैसे कोई शराब कारोबरी कितनी सहूलियत से अरबों रुपए डकार कर देश से भाग जाता है और कोई आध्यात्मिक गुरु 5 करोड़ जो उसके लिए बेहद मामूली रकम होती है का जुर्माना भरकर 1000 एकड़ जमीन पर कला के नाम पर पर्यावरण से खिलवाड़ करके स्वर्ग का सा नजारा धरती पर दिखा देता है.

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