दिल का बोझ और तनाव कम करने के लिए मुशायरे में शिरकत करने वालों की तादाद घट रही हैं क्योंकि शायर अभी भी जुल्फ, जंगल और जंग जैसे शब्दों में उलझे पड़े हैं. इस के बाद भी उन की अहमियत है क्योंकि वे कम लफ्जों में कायदे की बात कह जाते हैं और किसी की परेशानी की वजह नहीं बनते. मुशायरे हालांकि, सियासत के बडे़ अड्डे आज भी हैं.

कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी 6 अप्रैल को दिल्ली के एक मुशायरे में जा पहुंची और तयशुदा 10 मिनट के बजाय 3 घंटे रुकीं. मौका था जगजीवनराम की जयंती पर उन की बेटी, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार द्वारा आयोजित मुशायरे का जिस में कुछ नामचीन शायर भी कलाम पढ़ने आए थे. शायरों से सोनिया गांधी पूरी आत्मीयता से मिलीं तो ऐसा लगा मानो तख्तापलट में इन का सहयोग मांग रही हों. अब ये शायद कुछ करें, न करें लेकिन असहिष्णुता और भारत माता की जय पर विवादों को तो शायरी के जरिए आगे बढ़ा ही सकते हैं. अब यह सोनिया गांधी को तय करना है कि ऐसे विवादों से कांगे्रस को फायदा ज्यादा हो रहा है या नुकसान.

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