नीतीश कुमार ने संघवाद और भाजपा के खिलाफ देशव्यापी मुहिम छेड़ने के लिए तमाम समाजवादियों और सियासी दलों को एक झंडे तले लाने की कवायद शुरू कर दी है. इसके पीछे उनकी निगाहें साल 2019 में होने वाले लोक सभा चुनाव पर टिकी हुई हैं. सभी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश की राह में कई झमेले हैं पर इस सुर को छेड़ कर फिलहाल नीतीश नेशनल हीरो तो बन ही गए हैं. इसके साथ ही वह बिहार की सीमा से बाहर निकल कर दिल्ली में भाजपा को चुनौती देने और खुद को प्रधानमंत्री का दावेदार बनने की राह में अपना पहला कदम बढ़ा दिया है.

नीतीश कुमार ने भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ सभी राजनीतिक दलों को एकजुट करने की मुहिम छेड़ी है. उन्होंने खुल कर कहा कि देश और लोकतंत्र को बचाने के लिए सभी दलों को मिलना जरूरी है. साल 2014 के लोक सभा चुनाव नीतीजे के बाद उन्हें भाजपा की ताकत और क्षेत्रीय दलों की कमजोरी का अहसास हो चुका है. वह समझ चुके हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है, इसलिए उन्होंने गैरसंघवाद का नारा उछाल कर सभी भाजपा विरोधी दलों की निगाहें अपनी ओर कर ली हैं. वह कहते हैं कि अब देश में केवल 2 धुरी होगी. एक ओर भाजपा होगी और दूसरी ओर सारी पार्टियां रहेंगी.

अपनी बात में वजन पैदा करने के लिए वह राममनोहर लोहिया की सेाच का जिक्र करते हैं. वह कहते हैं कि जिस तरह से राममनोहर लोहिया ने कांग्रेस के खिलाफ सभी दलों को एक धुरी में आने पर जोर दिया था, उसी तरह से आज भाजपा और संघ के खिलापफ धुरी बनाने की जरूरत आ गई है. अब किसी तीसरे फ्रंट की बात बेमानी हो चुकी है.

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