राज्यसभा टैलीविजन चैनल पर एक अजीब स्टोरी दिखाई जा रही थी. यह स्टोरी आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक हेडगेवार पर आधारित थी. बीचबीच में बारबार डा. हेडगेवार और डा. भीमराव अंबेडकर के चित्र दिखाए जा रहे थे. स्टोरी में डा. हेडगेवार और डा. अंबेडकर के बीच अनेक समानताओं को बताया जा रहा था, जैसे वे दोनों गरीब घर से थे.

नागपुर के जिस घर में डा. हेडगेवार रहते थे, वह मिट्टी का बना हुआ था. एक बरसात में उस घर की दीवार ढह गई थी पर तब भी वे उसी स्थिति में उस में रह रहे थे. जब उन से दीवार बनवाने को कहा गया तो वे बोले कि देश में लाखों गरीबों के पास घर नहीं है. मैं उन की चिंता करूं या अपनी? इसी गरीबी से डा. अंबेडकर भी निकले थे. उन्हें भी लाखों वंचितों की चिंता थी. वे दोनों ही राष्ट्रवादी थे और महान देशभक्त थे.

यह सब सुन कर मैं सन्न रह गया. डा. अंबेडकर महान देशभक्त थे, इस में कोई

संदेह नहीं पर वे राष्ट्रवादी भी थे, यह उन का गलत मूल्यांकन है. राष्ट्रवाद एक

अलग अवधारणा है, जिस के बारे में डा. अंबेडकर के विचार हिंदू महासभा और आरएसएस किसी के भी नेता से, चाहे वे डा. हेडगेवार हों या वीर सावरकर, बिलकुल मेल नहीं खाते थे.

भेदभावपूर्ण जाति व्यवस्था

वर्तमान में आरएसएस और भाजपा दलित जातियों को हिंदू राजनीति से जोड़ने के लिए डा. अंबेडकर को राष्ट्रवाद के बहाने हिंदूवादी बनाने का कार्यक्रम चला रहे हैं. आरएसएस के नेताओं का यह प्रचार कि ‘डा. अंबेडकर ने डा. हेडगेवार के ही सामाजिक समरसता कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है,’ न केवल डा. अंबेडकर के दर्शन की गलत व्याख्या है, बल्कि उन्हें, उन की असल जड़ों से उखाड़ कर, हिंदूत्वादी बना कर, उन की विचारधारा को गंगा किनारे जला देने का उपक्रम भी है.

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