सैद्धांतिक रूप से यह बात सही लगती है कि पुराने नोट हटाकर आप नए नोट चलन में लाएं तो अर्थव्यवस्था से कालाधन निकाल सकते हैं, लेकिन हिन्दुस्तान एक जटिल अर्थव्यवस्था है, जहां छोटे कारोबारी हैं, गांव में किसान लोग हैं, उनका क्या होगा. आप अस्पताल जाएं तो कैश लेकर जाते हैं. छोटे स्तर पर नकदी अर्थव्यवस्था ही चलती है. उनको बड़ी असुविधा हो जाएगी.

बड़े उद्योगों के पास तो सारी सुविधाएं होती हैं, वे इससे निपटने के लिए रास्ता निकाल लेंगे. उन्हें जो भी हेरा-फेरी करनी होगी, कर लेंगे. अगले दो-तीन महीने में हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल होगा.

एक ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था सुस्त है, लोग कम खर्च करेंगे, उपभोग पर असर पड़ेगा. इस फैसले को अमल में लाना इतना आसान नहीं है. राजस्व सचिव खुद कह रहे हैं कि 20-25 दिन लोगों को दिक्कत होगी. इससे उपजी असुविधा कम से कम तीन महीने तक जारी रह सकती है.

जो नोट लिए जाने हैं और लोगों को जो समय-सीमा दी गई है, लगता है कि इसे लागू करने के लिए कोई तैयारी नहीं की गई है. बड़ा अचंभा यह कि उन्होंने कहा एक आदमी के बदले 10 आदमी उसकी नकदी को बदल सकता है. मसलन किसी के पास एक करोड़ नकदी कालाधन है तो वह हजार लड़कों को इकट्ठा करके कहेगा आप बैंक जाकर इसे बदल लाओ. छोटी-छोटी रकम के जरिए ये किया जा सकता है. यह एक तरह से बिना टैक्स लिए पिछले दरवाजे से छूट देने का रास्ता भी हो सकता है. हिंदुस्तान में लोग ऐसे पैंतरे अपना सकते हैं.

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