मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले बैतूल में आर एस एस द्वारा आयोजित हिन्दू सम्मेलन पर देश भर की निगाहें थीं. इस आयोजन की तैयारियां संघ के कार्यकर्ता पिछले छह महीनो से करते गांव गांव घूम घूम कर आदिवासियों को इसमें शामिल होने पीले चावल बांटते उन्हें हिन्दू सम्मेलन की मंशा बता रहे थे कि यह उनके भले के लिए है. यह और बात है कि बैतूल ही नहीं बल्कि देश के अधिकतर आदिवासी नहीं जानते कि मोहन भागवत कौन हैं और आर एस एस के लोग क्यों उन्हें हिन्दू बनाने जताने और साबित करने पर तुले हुये हैं. यह बात भी किसी सबूत की मोहताज नहीं कि देश के दूर दराज के दुर्गम इलाकों में रहने वाले आदिवासियों ने कभी खुद को हिन्दू नहीं माना, न आज मानने तैयार हो रहे.

8 फरवरी को बैतूल के हिन्दू सम्मेलन में मोहन भागवत क्या बोले और उनकी मंशा क्या थी उसे समझने से पहले संक्षेप में यह जान लेना जरूरी और अहम है कि क्यों आदिवासी हिन्दू नहीं हैं. दरअसल में यह मसला या फसाद आर्यों के भारत आगमन से जुड़ा है. आदिवासी जंगलों में रहते हैं और किसी हिन्दू देवी देवता को अपना आराध्य नहीं मानते. तमाम इतिहासकर इस मुद्दे पर दो राय नहीं हैं कि आदिवासी प्रकृर्ति के उपासक हैं, वे सूर्य धरती और पेड़ पौधों को ही सब कुछ मानते हैं और इसी तरह के वास्तविक प्रतीकों की उपासना करते हैं, मूलत उनका कोई धर्म नहीं है. आदिवासी देवी देवताओं के नाम पर सिर्फ बूड़ा या बड़ादेव की पूजन करते हैं जिसे आर्य शंकर कहकर प्रचारित करते रहे.

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