अपने मंत्रिमंडल में पहला फेरबदल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह बताने में कामयाब रहे हैं कि सुस्त और नाकारा मंत्री बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे, साथ ही कांग्रेसी शैली की तुष्टीकरण की नीति राजनीति जारी रहेगी. कट्टरवाद और तुष्टिकरण का यह अद्भुद संतुलन भगवा मंच से प्रदर्शित करना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन मोदी पीएम अपनी इसी  खूबी के चलते ही बन पाये थे.

हालिया फेरबदल में उन्होंने अपनी मुंह लगी मानी जाने वाली स्मृति ईरानी से मानव संसाधन विकास मंत्रालय छीन कर प्रकाश जावडेकर को महज इसलिए नहीं दिया कि स्मृति कई विवादों से घिरी थीं, बल्कि इसलिए दिया कि वे तकनीकी तौर पर हिन्दुत्व के माने नहीं समझ रहीं थीं. प्रकाश जावडेकर आरएसएस की जुवान और मंशा दोनों समझते हैं, इसलिए उन्हे प्रमोशन दिया गया, नहीं तो मोदी की नजर में अपने सारे मंत्री परफ़ार्मेंस के पैमाने पर फिसड्डी ही साबित हुये हैं. लेकिन काम भी उन्हे इन जैसों से ही चलाना है, इसलिए वे किसी तयशुदा फार्मूले की गिरफ्त में नहीं आए.

75 की उम्र का फार्मूला केवल मध्यप्रदेश तक समेट कर रख दिया गया. उम्र के दायरे में आ रहीं नजमा हेपतुल्ला को इसलिए नहीं हटाया गया कि इससे मुस्लिम समुदाय में अनदेखी का संदेशा जाता और उन्हीं के बराबर के कलराज मिश्र को इसलिए नहीं छेड़ा गया कि इससे ब्राह्मणों और कट्टर हिंदुओं में गलत संदेशा जाता. इसी तरह उत्तर प्रदेश के चुनावों के मद्देनजर ही अपना दल (हालांकि हाल फिलहाल अनुप्रिया के लिए पराया) की अनुप्रिया पटेल को मंत्री बनाकर दलित, पिछड़ों को भरोसा दिलाने की कोशिश की गई है कि सरकार उनकी अगुवाई को लेकर संजीदा है.

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