कोई मोदी फैक्टर का सियासी राग अलाप रहा है तो कोई राहुल के जादू का दावा कर रहा है लेकिन आगामी 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए इन दोनों से इतर जनता का मुद्दा तो कुछ और ही है. क्या है इस बार का मुद्दा, बता रहे हैं जगदीश पंवार.

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों की सरगर्मी तेज हो गई है. जातीय समीकरणों से ले कर टिकटों के बंटवारे, नेताओं की आपसी खींचतान के बाद चुनावप्रचार चरम पर पहुंच रहा है. 11 नवंबर से 4 दिसंबर के बीच होने वाले चुनाव के इस माहौल को देख कर लगता है राजनीतिक दल जीवनमरण की जंग में कूद पड़े हैं. तरहतरह के तमाशे सामने आ रहे हैं.

लोकसभा चुनावों से महज 5 महीने पहले होने वाले इन चुनावों में 5 में से 4 राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होने से इन्हें आम चुनावों के लिहाज से अहम माना जा रहा है. दोनों दलों की रणनीति लोकसभा चुनावों से पहले विधानसभा की जंग जीत कर माहौल अपने पक्ष में करने की है. राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव 2014 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है.

पांचों राज्यों के करीब 11 करोड़ मतदाताओं की कसौटी पर दोनों प्रमुख पार्टियां हैं. दिल्ली के अलावा इन राज्यों में और कोई तीसरा दल अधिक ताकतवर दिखाईर् नहीं देता. चुनावों में मोदी बनाम राहुल फैक्टर की चर्चा जरूर है मगर मतदाता उदासीन है.

मजे की बात यह है कि इस वक्त जब राज्यों और वहां के नागरिकों का भविष्य तय होने जा रहा है, ऐसे में देश साधुओं के सपने को सच होते देखने वाले मजमे में शामिल दिखाई पड़ता है, इस से बड़ी दुख और हैरानी की बात और क्या हो सकती है.इन 5 में से 3 राज्यों, राजस्थान, दिल्ली व मिजोरम में कांग्रेस और 2 राज्यों, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है.

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