एक जमाने में दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दुनियाभर में नई सोच और नए विचारों के लिए जाना जाता था. इस यूनिवर्सिटी ने राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी, कई धुरंधर राजनीतिबाजों ने यहीं से अपने जीवन की शुरुआत की, लेकिन आज धर्म के तथाकथित धंधेबाजों ने अपना धंधा चमकाने के लिए इन संस्थानों को ही अपना निशाना बनाया है. दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू पूरी दुनिया में छात्रों के नए विचार वाले विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है. यहां के पढ़े तमाम छात्र राजनीति, समाजसेवा, नौकरशाही और न्यायपालिका में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं. दूसरे विश्वविद्यालयों की तरह यहां किसी तरह का जातीय भेदभाव नहीं किया जाता.

देश ही नहीं विदेशों तक के छात्र भी यहां पढ़ने आते हैं. यहां के छात्र उन मुद्दों पर भी आपस में खुल कर बात करते हैं जो बाकी समाज में अछूत विषय समझे जाते हैं. छात्रों के लिए यहां आ कर पढ़ाई करना किसी सपने जैसा होता है. यह केंद्रीय विश्वविद्यालय है. उच्चस्तर की शिक्षा और शोध कार्य में यह विश्वविद्यालय भारत के सब से अच्छे विश्वविद्यालयों में आता है. 1969 में इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. करीब 550 शिक्षकों वाले इस विश्वविद्यालय में लगभग 6 हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रगतिशील परंपरा और शैक्षिक माहौल को बनाए रखने में यहां के छात्रसंघ को बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता है. यहां के छात्रसंघ के पूर्व पदाधिकारी ने भारतीय राजनीति पर भी अपनी छाप छोड़ी है. इस में प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, डी पी त्रिपाठी, आनंद कुमार व चंद्रशेखर प्रसाद प्रमुख रहे हैं.

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