जो व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में और वह भी सियासत में हो, उसके अलविदा कहने पर शोक मनाने का ज्यादा अवसर नहीं होता. कम से कम वैसा तो बिल्कुल नहीं, जैसा कि निजी जिंदगी जीनेवाले के घर-परिवार में होता है. दरअसल, जिंदगी तमाम अंतरविरोधों का एक कारवां लेकर चलती है. ऐसा ही तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के बारे में भी लक्ष्य किया जा सकता है. एक दिन के राष्ट्रीय शोक और तमिलनाडु में सात दिन के राजकीय शोक के बावजूद राज्य सरकार में चूंकि कोई शून्य स्थान नहीं हो सकता था, इसलिए जैसे ही जयललिता के निधन की खबर आई, दूसरी ओर उनके सर्वाधिक विश्वस्त पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी गई और उनके मंत्रिमंडल के 35 सहयोगियों को भी.
यह सवाल भी तुरंत तैरने लगा कि सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक में अब जयललिता की विरासत की बागडोर कौन संभालेगा या कि वह किसके हाथ होगी? जयललिता के बाद अन्नाद्रमुक में जो तीन नेताओं की त्रिमूर्ति सबसे पहले सामने है, वे हैं मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले पन्नीरसेल्वम, छाया की तरह जयललिता के साथ रहने वाली उनकी विश्वस्त व राजदार शशिकला और पार्टी के संसदीय दल के नेता थंबीदुरई. लेकिन सत्ता-राजनीति में शिखर पर एक की ही जगह होती है, ऐसे में कहा जा रहा है कि पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री जरूर बन गए हैं, लेकिन सत्ता की चाभी शशिकला के पास रहने वाली है. कहा जा रहा है कि शशिकला न सिर्फ जयललिता की सबसे करीबी रही हैं, बल्कि पार्टी पर भी उनकी मजबूत पकड़ है.
दिलचस्प है कि शशिकला पार्टी या सरकार में किसी पद पर नहीं हैं, फिर भी उन्हें जयललिता का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बताया जा रहा है. गौरतलब है कि जयललिता को श्रद्धांजलि देने चेन्नई पहुंचे प्रधानमंत्री ने भी शशिकला के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्हें सांत्वना दिया. आखिर संकेतों की भी सियासत में अहमियत तो होती ही है. जयललिता के समर्थकों के बीच चिनम्मा के नाम से मशहूर शशिकला को ही पार्टी का स्वाभाविक राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जा रहा है. जिस वक्त पीएम मोदी ने शशिकला के सिर पर हाथ रखा, उस मौके पर मुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम पास में ही मौजूद थे.