अगर कोई यह कहे कि योग कोई धार्मिक कृत्य या क्रिया नहीं है, तो उसकी नादानी पर या तो हंसा जा सकता है या फिर शर्तिया या बेहिचक यह कहा जा सकता है कि वह नए दौर के पनपते धार्मिक पाखंडो के साजिशकर्ताओं में से एक है. 21 जून को देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के कुछ और देशों ने भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया, तो इसे बजाय मोदी सरकार की उपलब्धि के रूप में इस नए नजरिए से देखा जाना मौजू है कि आखिरकार क्यों योग के प्रचार प्रसार और इसे सरकारी स्तर पर मनाने करोड़ों रूपये फूंके गए.

वजह सिर्फ इतनी है कि भारत माता की जय बोलने के टोटके के बाद योग ऐसा धार्मिक कृत्य है जो कर्मकांड से मुक्त है, यानि एक ऐसा काम है जिसके एवज में आप को पंडे को कोई भुगतान नहीं करना पड़ता. सरकार बताना यही चाह रही है कि कर्मकांडो से इतर भी हिन्दू धर्म है जिसे अब गैर ब्राह्मण भी बेचकर अपनी रोजी रोटी चला सकते हैं. यहां जानना बेहद दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटरी उन बाबाओं से नहीं बैठती, जो पूजा पाठ यज्ञ हवन वगैरह को पूर्णकालिक रोजगार या उद्धयोग बना चुके हैं, बल्कि उन की पटरी उस किस्म के बाबाओं से बैठती है, जो धर्म के कारोबार में नए नए आइडिये लाते हैं, वह भी ऐसे कि ग्राहक हिन्दुत्व से मुंह न मोड़े.

खुशियाँ बेचने बाले आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्री श्री रविशंकर और योग की आड़ में अब हैयर रिमूवर छोडकर सब कुछ बेचने बाले योग गुरु के खिताब से खामखा नवाज दिये गए बाबा रामदेव बेवजह मोदी की पसंद नहीं हैं, जो गैर हिंदुओं से भी सूर्य पूजा करवाते ॐ भी कहलवाने की कूबत रखते हैं.

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