आज जापान और चीन में इस बात को ले कर होड़ लग गई है कि भारत में ज्यादा निवेश कौन करे? निवेशकों में होड़ तभी होती है जब लाभ ज्यादा हो. शायद इस दृष्टि से दुनिया आज भारत को सब से मुफीद देशों में माप रही है. किंतु इस होड़ को ले कर हम इतने खुश क्यों हैं? शायद इसलिए कि हम निवेश के भूखे राष्ट्र हैं और चीन ने अगले 5 साल में भारत में 20 अरब डौलर का निवेश करने की घोषणा की है. सीमा पर जारी रार के बावजूद आर्थिक मोरचे पर 12 दस्तावेजी करार की कड़ी के जरिए भारत व चीन ने एकदूसरे का लाभ लेने की कोशिश की है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और चीन को एक जिस्म, दो जान कहा है. शायद प्रधानमंत्री को भरोसा है कि हाथ मिलाते रहिए, एक दिन दिल भी मिल ही जाएंगे. यह आशा बलवती हो. किंतु इस खुशी में हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जिस तरह जरूरत से ज्यादा किया गया भोजन जहर है, ठीक उसी तरह किसी भी संज्ञा या सर्वनाम का जरूरत से ज्यादा किया गया दोहन भी एक दिन जहर ही साबित होता है. चीन अपनी धरती पर यही कर रहा है. भारत अपने यहां यह न होने दे. चीन निवेश करे, किंतु द्विपक्षीय सहमत शर्तों पर.

गंगा जलमार्ग हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण द्वारा जारी विज्ञापन में कहा गया है कि परामर्शदाताओं का चयन, रोजगार आदि विश्व बैंक कर्जदाताओं के निर्देशों के अनुसार होगा. यह न हो.

विकास के मानकों की अनदेखी

यह सच है कि चीन ने अपनी आबादी को बोझ समझने के बजाय एक संसाधन मान कर बाजार के लिए उस का उपयोग करना सीख लिया है. यह बुरा नहीं है. ऐसा कर भारत भी आर्थिक विकास सूचकांक पर और आगे दिख सकता है. किंतु समग्र विकास के तमाम अन्य मानकों की अनदेखी कर के यह करना खतरनाक होगा. त्रासदियों के आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक दौड़ में आगे दिखता चीन प्राकृतिक समृद्धि, सेहत और सामाजिक मुसकान के सूचकांक में काफी पिछड़ गया है. उपलब्ध रिपोर्ट बताती है कि चीनी सामाजिक परिवेश में तनाव गहराता जा रहा है. अमेरिका की ‘गैलप’ नामक अग्रणी सर्वे एजेंसी के मुताबिक, दुनिया के खुशहाल देशों की सूची में भारत, चीन से 19 पायदान ऊपर है. भारत के 19 फीसदी लोग अपने रोजमर्रा के काम और तरक्की से खुश हैं, तो चीन में मात्र 9 प्रतिशत.

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