आज तक भारत एक राष्ट्र नहीं बन सका और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के प्रमुख हैं कि वे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का राग अलापे जा रहे हैं. जब भी भारत में केंद्र या किसी राज्य में भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा की सरकार बनती है तो आरएसएस इसी तरह की मांग करना शुरू कर देता है.

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का हिंदू राष्ट्र का राग इसलिए बेतुका है क्योंकि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, और उस का संविधान धर्मनिरपेक्षवादी है. उस में कहा गया है कि कोई भी धर्म राज्य का धर्म नहीं बनेगा. नेपाल कुछ साल पहले तक हिंदू देश था, जिस पर आरएसएस को बहुत गर्व था, पर अब वह लोकतांत्रिक राष्ट्र बन गया है. ऐसे में आरएसएस लोकतांत्रिक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का दिवास्वप्न क्यों देख रहा है? वह अच्छी तरह जानता है कि भारत में वर्णवाद से पीडि़त जातियों में अस्मिता और स्वतंत्रता की चेतना लगातार एक बड़ी सामाजिक क्रांति की चेतना बनती जा रही है, जो भारत को कभी हिंदू राष्ट्र नहीं बनने देगी.

बेतुका है राग

हिंदू राष्ट्र का राग इसलिए भी बेतुका है क्योंकि हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज में ही एक राष्ट्र की भावना नहीं है. इसे थोड़ा समझ लिया जाए. राष्ट्र का अर्थ है कौम. यह अंगरेजी के ‘नेशन’ शब्द का अनुवाद है, ‘कंट्री’ शब्द का नहीं. उर्दू में ‘नेशन’ के लिए ‘कौम’ शब्द का इस्तेमाल होता है. हिंदी में ‘राष्ट्र’ शब्द से ‘देश’ का भ्रम होता है, जबकि यह गलत है. इस का सही अर्थ ‘कौम’ है. अगर हम हिंदी में राष्ट्र का दूसरा शब्द तलाशेंगे तो वह ‘नस्ल’ ही हो सकता है. वैसे भी राष्ट्रवाद और नस्लवाद में कोई खास अंतर नहीं है. हिंदू राष्ट्र, हिंदू कौम या हिंदू नस्ल कुछ भी कह लीजिए, मतलब एक ही है.

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