झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन को अपने पिता शिबू सोरेन की परछाईं से बाहर निकलने का नुसखा हाथ लग गया है. राज्य की रघुवर दास सरकार ने हेमंत सोरेन को अपनी राजनीति चमकाने और आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाने का बेहतरीन मौका दे दिया है. सीएनटी ऐक्ट (छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम-1908) और एसपीटी ऐक्ट (संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम-1949) में संशोधन कर रघुवर दास सरकार ने बैठेबिठाए नया झमेला मोल ले लिया है. हेमंत सोरेन इस मुद्दे को भुनाने की जुगत में लग गए हैं और वे हर मंच से ऐलान कर रहे हैं कि जब तक सरकार सीएनटी और एसपीटी ऐक्ट में किए गए बदलाव को वापस नहीं लेगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा. हेमंत सोरेन को उम्मीद है कि जिस तरह से उन के पिता शिबू सोरेन अलग झारखंड राज्य की मांग को ले कर एक बड़ा आदिवासी आंदोलन खड़ा करने में कामयाब हुए थे, उसी तरह की कामयाबी अब उन्हें भी मिल सकती है. 10 अगस्त, 1975 को जनमे हेमंत सोरेन फिलहाल झारखंड मुक्ति मोरचा के कार्यकारी अध्यक्ष हैं. साल 2014 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में उन्हें और उन की पार्टी को करारी हार मिली थी. वे दुमका विधानसभा सीट पर भाजपा के हेमलाल मुर्मू से 24,087 वोटों से चुनाव हार गए थे.

81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटों की जरूरत होती है और भाजपा गठबंधन ने 42 सीटों पर कब्जा जमा कर हेमंत सोरेन की सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. झारखंड विकास मोरचा 19 सीटें जीत कर दूसरी सब से बड़ी पार्टी बनी थी. झारखंड मुक्ति मोरचा को 8, कांग्रेस को 6 और बाकी को 6 सीटें हासिल हुई थीं. भाजपा गठबंधन को 35 फीसदी वोट मिले थे, जबकि साल 2009 के चुनाव में उसे 11 फीसदी ही वोट मिले थे. हेमंत सोरेन की अगुआई में चुनाव लड़ कर झामुमो को पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले सीट और वोट फीसदी दोनों में इजाफा हुआ. साल 2009 में झामुमो को 18 सीटें और कुल 14.47 फीसदी वोट मिले थे, जबकि साल 2014 के चुनाव में उसे 19 सीटों पर जीत मिली, पर वोट फीसदी में जोरदार इजाफा हुआ. यह आंकड़ा मोदी लहर के बाद भी 20.4 फीसदी तक पहुंच गया था. विधानसभा चुनाव में भाजपा का सीधा मुकाबला झामुमो से रहा था.

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