सरकार का काम स्कूल व अस्पताल बनवाना है न कि मंदिरों का निर्माण और मजारों पर चादर चढ़ाना. बावजूद इस के भाजपा को राम नाम की माला जपने वाली पार्टी कहने वाले नीतीश कुमार खुद सियासत में धर्म का तड़का लगा कर बिहार में दुनिया का सब से विशाल मंदिर बनवाने पर आमादा हैं. सियासत में धर्म का रंग चढ़ाए इन राजनीतिक हस्तियों की असल मंशा क्या है, इस पर रोशनी डाल रहे हैं बीरेंद्र बरियार ज्योति.
‘देदे राम दिला दे राम, पीएम की कुरसी पर बैठा दे राम...’ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल अपने भाषणों में इस जुमले का इस्तेमाल जरूर करते हैं. राम के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा पर जम कर तीर चलाते हैं. जनता की तालियां लूटते हैं. भाजपा को राम नाम की माला जपने वाली पार्टी करार देने में लगे नीतीश बिहार में दुनिया का सब से बड़ा मंदिर बनाने को हरी झंडी दिखा चुके हैं. भाजपा के राममंदिर की राजनीति का करारा जवाब देने के लिए नीतीश ने इस हिंदू मंदिर को बनवाने का काम चालू भी करवा दिया है.
कभी खुद को पूजापाठ से दूर रखने का दावा करने वाले नीतीश कुमार मंदिरों और मसजिदों में घूमघूम कर खुद को धार्मिक दिखाने के चक्कर में लगे हुए हैं. कभी मंदिर में जा कर पूजा कर रहे हैं तो कभी मजारों पर जा कर चादर चढ़ा रहे हैं. कभी लालू यादव के पाखंड की खिल्ली उड़ाने वाले नीतीश अब खुद ही पोंगापंथ के दलदल में धंसते जा रहे हैं.
भाजपा की मंदिर की राजनीति के काट के लिए नीतीश ने बिहार के वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर के केसरिया इलाके में दुनिया का सब से बड़ा और ऊंचा मंदिर बनाने की कवायद शुरू करवाई है. हाजीपुर-बिदुपुर रोड पर 15 एकड़
जमीन में बनने वाला यह रामायण मंदिर 222 फुट ऊंचा होगा. मंदिर बनवाने के लिए 5 मार्च, 2012 को भूमिपूजन किया गया था. मंदिर को बनाने में करीब 200 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है. यह मंदिर कंबोडिया के अंकरोवाट मंदिर की नकल होगा.
बिहार राज्य अति पिछड़ा महासंघ के संयोजक किशोरी दास कहते हैं कि नीतीश कुमार, भाजपा और तमाम राजनीतिक दल मंदिर और मसजिद बनाने में जितनी रकम खर्च करते हैं उतनी रकम से गरीबों की कई योजनाएं जमीन पर उतारी जा सकती हैं. सरकार का काम है अस्पताल और स्कूल आदि बनवाना, न कि मंदिर बनवाना और मजार पर चादर चढ़ाना. अगर इस के पीछे वोटबैंक बनाना ही वजह है तो गरीबों और पिछड़ों के लिए बनाई गई योजनाओं को ही सही तरीके से लागू कर दिया जाए तो देश के गरीब और पिछड़े उन के परमानैंट वोटर बन जाएंगे.
मजार पर चादर
पिछले जनवरी महीने में कड़ाके की ठंड के बीच जब बिहार के गरीब ठंड से ठिठुर रहे थे तो नीतीश कुमार उन्हें ठंड से बचने के लिए चादरकंबल आदि देने के बजाय मजार पर चादर चढ़ाने में मशगूल रहे. नीतीश कुमार के साथ राजद सुप्रीमो लालू यादव भी मजार पर चादर चढ़ा कर मुसलिमों को रिझाने की सियासत में लगे रहे.
14 जनवरी को मुसलमानों के पर्व और 31 जनवरी को उर्स के मौके पर हाड़ कंपाती ठंड के बीच दोनों नेताओं में मजार पर चादर चढ़ाने की होड़ लगी रही. पटना से सटे फुलवारीशरीफ प्रखंड के मजार पर दोनों नेताओं ने चादर चढ़ाई. मुसलिम नेता आसिफ आलम कहते हैं कि मजार पर चादर चढ़ाने से मुसलमान अब खुश नहीं होने वाला, पढ़ालिखा मुसलमान समझ गया है कि सभी सियासी दल उन का दोहन करते रहे हैं और मुसलमानों का हमदर्द बनने की नौटंकी करते रहे हैं.
22 जुलाई, 2009 को सूर्यग्रहण के दौरान नीतीश और लालू के बीच चली जबानी जंग को बिहार के लोग तो आज तक नहीं भूल सके हैं. पटना से 40 किलोमीटर दूर तरेगना के आर्यभट्ट साइंस सैंटर में सूर्यग्रहण के दौरान नीतीश कुमार ने सूर्यग्रहण का नजारा लेते हुए चाय और बिस्कुट खाए थे तो लालू यादव ने कहा था कि सूर्यग्रहण के समय कुछ भी खानेपीने से पाप लगता है.
नीतीश की इस हरकत की वजह से ही बिहार भयानक सूखे की चपेट में आया. उस साल कम बारिश होने की वजह से बिहार के 38 में से 33 जिलों में सूखा पड़ा था. तब नीतीश ने लालू के अंधविश्वास का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि सूर्यग्रहण धर्म की चीज नहीं, बल्कि यह विज्ञान से जुड़ा मसला है. लालू के ऐसी कट्टरपंथी बातों की वजह से ही बिहार की हंसी उड़ाई जाती है. आज वही नीतीश पाखंड और आडंबरों से पूरी तरह घिरे दिखाई दे
रहे हैं.
नेताओं की मंदिर, मसजिद, मजार, चर्च आदि जगहों पर जा कर सिर झुकाने, पूजापाठ करने और दानदक्षिणा देने की पोंगापंथी प्रवृत्ति कोई नई बात नहीं है. उन्हें यह लगता है कि जनता की समस्याओं को हल करने के बजाय पूजापाठ से ही वोटबैंक मजबूत हो जाएगा. चुनाव का मौसम आने पर हर दल के नेता ऐसी ऊलजलूल हरकतों में लग जाते हैं. सभी नेताओं को अपने काम और जनता से ज्यादा भरोसा पत्थर की मूर्तियों और मजारों पर है.
पाखंड पर भरोसा
कोई मंदिरमसजिद में सिर झुकाता फिर रहा है तो किसी ने पंडितों को अपना हाथ दिखला कर ऐसी अंगूठी पहन ली है कि मानो चुनाव में जीत पक्की हो गई हो. बाबाओं के चक्कर में नेता दिल्ली, राजस्थान, बनारस, हरिद्वार, देवघर तक के चक्कर काट आए हैं. इतना ही नहीं, अकसर मांसमदिरा का लुत्फ लेने वाले नेता चुनावी मौसम में पूरी तरह से शाकाहारी भी हो गए हैं.
नीतीश शिवलिंग पर दूध चढ़ा रहे हैं तो लालू यादव हर साल छठ पूजा पर गंगा नदी में नारियल, फूल व पैसा बहाते रहे हैं. लालू गोपालगंज के थाबे मंदिर अकसर जाया करते हैं. लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान भी दरगाहों पर चादर चढ़ा कर अपनी पार्टी को जीत दिलाने के टोटके में लगे हुए हैं, हालांकि वे राम नाम जपने वाली भाजपा की उंगली पकड़ चुके हैं.

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