संसद के आज से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र के पहले मौसम भले ही ठंडक का एहसास देने लगा हो, लेकिन संसद के अंदर खासी गरमी के आसार दिख रहे हैं. तय है कि यह संसद सत्र सत्ता और विपक्ष, दोनों के लिए बड़ी व बराबर की चुनौतियां पेश करेगा. जीएसटी की राह आसान होने की दृष्टि से पिछला सत्र सरकार के लिए जितना भी सुखद रहा हो, लेकिन यह सत्र नोटबंदी के ताप से उपजी गरमी में डूबेगा-उतराएगा, इसमें शक नहीं. यह सत्र उस वक्त शुरू हो रहा है, जब सरकार और विपक्ष, दोनों के पहले से तयशुदा एजेंडे बदल चुके हैं और यह मसला दोनों के लिए खासी चुनौती खड़ी करेगा. यानी भोपाल जेल ब्रेक कांड और एनकाउंटर से उपजे हालात, गुजरात पेट्रोलियम में कई हजार करोड़ के घोटाले और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस के जेहन से निकले सवाल नोटों की आंच के सामने अब शायद उतना ताप नहीं दिखा पाएं.

विधायी काम के लिहाज से सबसे महत्त्वपूर्ण जीएसटी बिल है, जिस पर अब सहमति बन गई है और जिसे लोक सभा में पास कराने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं है तथा जिसको राज्य सभा से पास कराने की अनिवार्यता भी नहीं है. बात इस बिल भर की होती तो सरकार एकदम निश्चिंत रह सकती थी पर मामला उससे भी बड़े आर्थिक फैसले, नोटबंदी का है जिस पर कांग्रेस के उप नेता आनन्द शर्मा पहले ही मतविभाजन वाले प्रावधान 267 के तहत नोटिस दे चुके हैं. सदन में दलों की जो स्थिति है, उसके हिसाब से सरकार के लिए मतविभाजन से भी कोई खतरा नहीं है, पर इससे भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि सरकार के इस फैसले पर जिस तरह पक्ष और विपक्ष बंट गए हैं, उसमें अचानक भाजपा सांसदों का एक बड़ा वर्ग सरकार के फैसले के विरोध में वोट दे दे, इसकी कोई संभावना नहीं है.

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